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रायपश्रेणी मांहे सिध्या, सूर्याभआदि कहंतजी, ए जिन आगम वयण सुणीने, लहीए सुख अनंतजी ....३ श्रुतदेवीने पाये लागुं, जिनपुजु त्रण वारजी जे जिन प्रतिमा प्रेमे पुजे, तेहना विघ्न निवारजी, तपगच्छनायक कुमति भंजन, श्री विजय देव सुरीरायजी, ऋषभदास कहे कुमति त्यजीने, पुजो श्री जिनरायजी,.... ४
(105) जन्म कल्याणकनी स्तुति
छप्पन दिशिकुमरीनां आसन, कंप्या ते सहु आवेजी, जोयण ओक अशुचि टाळी, प्रभु गुण मंगळ गावेजी; अधोवासी ने ऊर्ध्ववासी, आठ आठ जे देवीजी, आवी प्रणमी निज निज करणी, कीधी प्रभुपद सेवीजी. १ तेरमे द्वीपे पर्वत रुचके, देवी चालीश जाणोजी, आठ आठ ओक ओक दिशिनी, बीस ओम प्रमाणोजी; चार विदिशानी चउ देवी, चार मध्ये वसनारीजी, इम छप्पन परिवार संघाते, जिनभक्ति मनोहारीजी. २ भूमिशोधन मेघ फूलनो, वींजण कळशा नीरजी, चामरवींझण दर्पणधारण, दीपकधारण धीरजी; नालच्छेद से आप आपणी, करणी सूत्र वखाणीजी, जन्म सफल करवा बहु भक्ते, आतमहितकर जाणीजी. ३ इम बहु भक्ते छप्पन कुमरी, कधी करणी रंगेजी, प्रभुगुण गावे नव नव ताने, नाटक गीत उमंगेजी; दीपविजय कविराज प्रभुजी, जीवजो कोडी वरिसजी, इम आशिष दई निज निज स्थानक, पहोंचे सकल जगीसजी. ४
(106) षट् अतिशयनी स्तुति
षट् अतिशय कहुं वर्षीदान, सौधर्म इन्द्र सुगुणनिधान, अवसर पुण्यप्रधान, दोय हाथ पर बेसे सुजाण, थाके - नहिं प्रभु देता दान, अतिशय पहेलो जाण; बीजो इन्द्र जे कहीये इशान, छडीदार थई रहे अकध्यान, शाश्वत अह विधान, चोसठ इन्द्र वर्जीने जाण, लेतां देतां सुर वारे ते ठाण. अतिशय बीजो प्रमाण १ भवनपतिमां वडा कहावे, चमर बलीन्द्र नाम सुहावे, जिनपतिना गुण गावे, प्रभुजीनी मुठी नियमावे, याचक भाग्यथी अधिक जावे, चमरेन्द्र हीन करावे; भाग्याधिकने ओछां थावे, बलीन्द्र तेहमां अधिक बनावे, भाग्य प्रमाणे पावे, जिनकरणी करी आनंद पावे, त्रीजो