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(76) श्री आचार्यपदनी सज्झाय आचारी आचार्य नोजी, त्रीजे पद धरो ध्यान, शुभ उपदेश प्ररुपताजी, कह्या अरिहंत समान, सूरिश्वर नमतां शिवसुख थाय. भव भवना पातिक जाय, सूरिश्वर नमतां शिवसुख थाय. ॥१॥ पंचाचार पलावतांजी, आपण पे पालंत, छत्रीश छत्रीशी गुणेजी, अलंकृत तनुं विलसंत सूरिश्वर नम० ॥२।। दर्शनज्ञान चारित्रनाजी, ओकेक आठ आचार, बारह तप आचारनाजी, इम छत्रीश उदार सूरिश्वर नम० ॥३॥ पडिरुपादिक चौदे अ छेजी, वली दश विध यति धर्म, बारह भावना भावतांजी, ओ छत्रीशे मर्म सूरिश्वर नमः ॥४॥ पंचेन्द्रिय दमे विषयथीजी, धारे नवविध ब्रह्म, पंचमहाव्रत पोषतांजी, पंचाचार समर्थ सूरिश्वर नम० ॥५।। समिति गुप्ति शुद्धि धरेजी, टाले चार कषाय, ओ छत्रीशे आदरे जी, धन्य धन्य तेहनी माय, सूरिधर नम० ॥६।। अप्रमत्ते अर्थ भांखताजी, गणि संपद जे आठ, छत्रीश चउविनयादिकेजी, ओम छत्रीशे पाट, सूरिश्वर नम० ॥७॥ गणधर उपमा दीजीओजी; युग प्रधान कहाय, भाव चारित्री तेहवाजी, तिहां जिन मार्ग ठराय सूरिधर नम० ॥८॥ ज्ञानविमल गुण गावतांजी गाजे शासन मांहे, ते वांदि निर्मळ करोजी, बोधीबीज उच्छाह सूरिधर नम० ॥६॥ (77) उपाध्यायपदनी सज्झाय (राग : जननी जोड सखी नहिं मळे)
चोथे पदे उवज्झायर्नु, गुणवंतनुं धरो ध्यान रे; युवराज सम ते कह्या, पद सूरिने समान रे चोथे० (१) जे सूरि सम व्याख्यान करे, पण न धरे अभिमान रे; वळी सूत्र अर्थनो पाठ दीये, भविजीवने सावधान रे चोथे० (२) अंग अग्यार चौद पूर्व जे, वळी भणे भणावे जेहरे; गुण पचवीश अलंकर्या, दृष्टिवादे अर्थना गेहरे चोथे० (३) बहु नेहे अर्थ अभ्यासे सदा, मन धरतां धर्म ध्यान रे; करे गच्छ निश्चित प्रवर्तक, दिये स्थविरने बहु मान रे चोथे० (४) अथवा अंग अग्यार जे, वली, तेहना बार उपांग रे, चरण करणनी, सित्तरी, जे धारे आपणे अंग रे, चोथे० (५) वळी धारे आपणे अंगे, पंचागी, मते शुद्धवाणी रे; नयगम भंग प्रमाण विचारने, दाखता जिनवर आणे रे चोथे० ।।६।। संघ सकळ हित कारिआ, रत्नाधिक मुनि