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(74) श्री अरिहंत पदनी सज्झाय (राग : आजनो दिवस मने)
वारी जाउं श्री अरिहंतनी, जेहना गुण छे बार मोहन, प्रति हारज आठ छे, मूल अतिशय छे चार मोहन वारि ० १ वृक्ष अशोक सुर कुसुमनी, वृष्टी दीव्यध्वनी वाण मोहन, चामर सिंहासन दुंदुभि, भामंडल छत्र वखाण मोहन वारी० २ पूजा अतिशय छे भलो, त्रिभुवन जनने मान, मोहन, वचना अतिशय जोजन गामी, समजे भविय समान मोहन वारि० ३ ज्ञाना अतिशय अनुतर तणा, संशय छेदनहार, मोहन, लोका लोक प्रकाशतां, केवळ ज्ञान भंडार, मोहन वारि० ४ रागादिक अंतर रिपु, तेहनो कीधो अंत मोहन, जिहां विचरे जगदिश्वरुं, तिहां साते इति समंत मोहन वारि० ५ अहवा अपायापगमनो, अतिशय अति अद्भुत मोहन, अह निश सेवा सारता, कोडी गमे सुरहुंत मोहन वारि० ६ मार्ग श्री अरिहंतनो, आदरिओ गुणगेह मोहन, चार निक्षेपे वांदिओ, ज्ञान विमल गुणगेह मोहन वारि० ७
(75) सिद्धपदनी सज्झाय (राग : आजे आव्याने काले आवशुं रे)
नमो सिद्धाणं बीजे पदे रे लाल, जेहना गुण छे आठ रे हुं वारि लाल, शुक्ल ध्यान अनले करी रे लाल, बाल्या कर्म कठोर रे हु० ||१|| ज्ञानवरणी क्षये लह्युं रे लाल, केवळ ज्ञान अनंत रे हुं वारिलाल, दर्शनावरणी क्षयथी थया रे लाल, केवळ दर्शन कंत रे हु० || २ || नमो अक्षय अनंत सुख सहजथी रे लाल, वेदनी कर्मनो नाश रे मोहनीय क्षये निर्मळु रे लाल, क्षायिक समकित वास रे हु. २० ||३|| अक्षय स्थिति गुण उपन्यो रे लाल, आयु कर्म अभाव रे हुं वारिलाल नाम कर्म क्षये निपन्यो रेलाल, रूपादिक गति भाव रे हुं वारिलाल अगुरुलघु मुण उपन्यो रे लाल, न रह्यो कोई विभाव रे हु० ||४|| गोत्र कर्मना नाशथी रे लाल, निज प्रगट्या जस भाव रे हु० ||५|| नमो० अनंत वीर्य आतम तणुं रे लाल प्रगटयो अंतराय नाश रेहुं वारिलाल || ६ || आठे कर्म नाशी गया रे लाल, अनंत अक्षय गुण वास रे हु० न० भेद पन्चर उपचारथी रे लाल, अनंतर परंपर भेद रे निश्चयथी वीतरागना रे लाल, किरण कर्म उच्छेद रे हु० नमो० ॥७॥ ज्ञानविमळनी ज्योतिमां रे लाल, भासित लोकालोक रे तेहनां ध्यान थकी थशे रे लाल, सुखीया सघळा लोक रे हु० नमो० ॥८॥