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आदे, चारशे चार हजार; सहस चउद मुनिश्वर, गणधर वर अग्यार. ॥२॥ चंदन बाला प्रमुख, साध्वी सहस छत्रीश, दोढ लाख सहस नव, श्रावक दे आशीष. त्रण लाख श्राविका, उपर सहस अढार; संघ चतुर्विध थाप्यो, धन धन जिन परिवार. ॥३॥ प्रभु अशोक तरु तले, त्रीगडे करे वखाण; सुणे बारे पर्षदा, योजन वाणी प्रमाण. त्रण छत्र सोहे शिर, चामर ढाले इंद्र; नाटक बद्ध बत्रीश, चोत्रीश अतिशय जिणंद. ॥४।। फुल पगर भरे सुर, वाजे दुंदुभी नाद; नमे सकल सुरासुर, छांडी सवि प्रमाद. चिहं रुपे सोहे, धर्म प्रकाशे चार; चोवीशमो जिनवर, आपे भवनो पार. ॥५॥ प्रभु वरस बहोंतेर, पाली निरमल आय; त्रिभुवन उपगारी, तरण तारण जिनराय. कार्तिक मासे दिन, दिवाली निर्वाण; प्रभु मुगते पहोता, प्रणमे नित्य कल्याण. ॥६।।
(कलश) ओम वीर जिनवर सयल सुखकर, नामे नवनिधि संपजे; घर ऋद्धि वृद्धि सुसिद्धि पामे, अकमना जे नर भजे. तपगच्छ ठाकुर गुण वैरागर, हीर विजय सूरिश्वरो; हंस राज वंदे, मन आणंदे, कहे धन्य मुज ओ गुरो. ।।१।।
(29) श्री महावीर स्वामीना सत्तावीश भवनुं स्तवन
(दुहा) पुरण प्रेमे प्रणमीए, ब्रह्माणी गुणखाणी; जास प्रसादे पामीए, निरमळ नवरस वाणी.।।१॥ श्री गुरुचरण कमळ नमुं, मोटो महिमा जास; सफल मनोरथ मन तणा, वदति वचन विलास ॥२॥ पिता सिद्धारथ जेहनो, त्रिशलादेवी मात; बहेनी जास सुदंसणा, नंदि वर्धन भ्रात ॥३॥ नारी जशोदा मन वस्यो, सात हाथ तनुं मान; वरस बहोतेर आउखुं, लंछन सिंह प्रधान ॥४॥ क्षत्रिय कुंडपुर जनमीयो, सोवन वरण शरीर; पग अंगुठे नचावीओ, मेरु गिरिवर धीर.॥५॥ वीर करम भड भंजवा, वीर दीन दातार; वीर सहु ने वालहो, वीर हियानो हार ॥६॥ ते जिनवर चोवीशमो, महावीर भगवंतः सतावीश भव वर्णवी, गाशुं गुण महंत ।।७।।
(ढाल १) (राग :--नित्य समरूं साहेब सयणा) पश्चिम विदेह वखाणीएए, अधिकारी गामनो जाणीएए; नयसार नामे वनमां गयो ए, तिहां साधु संयोग सहेजे थयो ए।।।८।। मारग भूला साधु सेवा करीए, शुद्ध समकित मति तिहां धुरि धुरिए ए; फासु असण पाणी केलव्या वहोरावीयां ए, भला