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(55) श्री सुमतिनाथ जिन स्तुति सुमति जिनेसर अति अलवेसर, आश धरूं अविनाशीजी, कौशल्या नगरीओ कहियो, मेधराय रवि भासीजी, मंगलामात सुजात मलाव्यो, बीज दिने जिन जायोजी, हरखे कुमरी छप्पन हुलराये, इन्द्रादिक गुण गायोजी, १ गुण सुमति ग्रहे लहे मुक्ति, प्रवचन साचुं सुणीएजी, अविनाशी अरज अवधारी, अनुभव रसमांश्युं उणुंजी, गुण अनंत गिरुआनां गाजे, लोक चउद जिनलाजेजी, पांचमां सुमति पांचे त्रिण गुप्ति आवे, आपो प्रवचन छाजेजी, २ पंच परमेष्टि ज्ञानादिक पांचे, जिनकल्पी जिनराजेजी, पांचमा पंच मिथ्यात्व प्रजाली, क्रौंच लंछनथी विराजेजी, प्रभु पंचमी गति पहोंचे पहोंचाडे, विरुआ विषय विरामोजी, अचल निर्मल केवल दुजे, बीजे सुमति सिद्ध पावेजी, ३ त्रिवंकी त्रिभुवन यक्ष तुंबरु, बलीयो संघने सहायेजी, देवी काली रढीआळी रुपाळी, रमझम नेउरी निवाजेजी, जिनशासन आसन अधिकारी, सुमति भगति भली भालीजी, पंडीतरत्न पसाये इम पभणे, विनीतनी वाणी रसालीजी, ४
(56) श्री सुमतिनाथ जिन स्तुति सुमतिनाथ जिन पांचमां, सो गणधर जाणुं चालीश लाख पूरव तणुं, जस आयुं वखार्पु, सहस शुं संयम आदर्यो, पामी केवलनाण, समेतशिखर मास अणसणे, सहसशुं निर्वाण १. ऋषभ मल्लि नेमि पासजी, करी त्रण उपवास, वासुपूज्य एक पौषधे, शेष छट्ठ सुविलास, नाण लह्यां हवे वीरजी, छठ्थी शिववास, ऋषभजी षट् उपवासथी, शेषने एकमास, २. समोसरण सुर विचरंता, फूलवृष्टि अशोक, दिव्यध्वनि चामर तथा, सुणे देशना लोक, सिंहासन भामंडल, वाजे दुंदुभि थोक, छत्र त्रण जोई हरखतां, भवि जिम रवि कोक, ३. सिंहराशी जस जनमनी, मघा नक्षत्र सार, चैत्यवृक्ष प्रियंगु मुनि, सहससु भवपार, तुंबरूं महाकाली सुरी, सेवे निरधार, जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां जयकार, ४.
(57) श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तुति मनह मनोरथ पुरण समरथ, कलियुगमा अवतरीयोजी, रूप अनोपम