________________
252
(3) पद्मप्रभ जिन स्तवन घडी घडी सांभरे सांइ सलुणा, पद्मप्रभ जिन दिलसे न विसरे, मानु किया कछु गुना दुना, दरिशण देखत ही सुखपाउं, तो बिन होत हुँ ऊना दुना । घडी०॥१॥ प्रभुगुण ज्ञान ध्यान विधि रचना, पान सुपारी काथा चूना, राग भयो दिलमें आ योगे, रहे छिपाया ना छाना छूना ।। घडी०।।२।। प्रभु गुण चित्त बांध्यो सब साखे; कुण पइसे लेवे घरका खूणा, राग जगा प्रभु शुं मोहे प्रगट, कोउ नया कहो कोऊ जूना ॥ घडी०॥३॥ लोकलाज से जो चित्त चोरे, सोतो सहज विवेक ही सूना, प्रभु गुण ध्यान विगर भ्रम भूला, करे किरीया सो राने रुला ॥ घडी० ॥४॥ में तो नेहकीयो तोही साथे, अब निवाहोता सेहुना, जस कहेता बिनुं और न सेवू, अमीय खाई कुण चाखे लूणा ॥ घडी० ॥५॥
(4) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग - सांभळ छेल्ली वात)
श्री पद्म प्रभुना नामने, हुं जाउ बलिहार, नामजपंता दीहागामु, भव भय भंजनहार (२).....१ नाम सुणंता मन उल्लासे, लोचन विकसीत होय, रोमांचित हुए देहडी, जाणे मीलीयो सोय.....२ पंचम आरे पामवो, दुल्लहो प्रभु देदार, तोपण तारा नामनो, छे मोटो आधार,.....३ नाम ग्रहे आवी मीले, मन भीतर भगवान, मंत्रबळे जेम देवता, व्हालो कीधो आह्वान.....४ ध्यान पदस्थ प्रभावथी, चाख्यो अनुभव स्वाद, मान विजय वाचक भणे, मूको बीजो वाद.....५
(5) पद्मप्रभ जिन स्तवन (राग - मोसम है आ सुहाना.....) ___ पद्म प्रभु जिन सेवना, में पामी पुरव पुन्य हो, जन्म सफळ ए माहरो, हुं मार्नु ए दिन धन्य हो....(१) विनती निज सेवक तणी, अवधारो दिन दयाळ हो, सेवक जाणीने आपणो हवे, महेर करो मयाळ हो....(२) दुषम
आरे जो प्रभु मीलीओ, तो फलीयां वांछित कामहो, मानुं तरता जलनिधि हुं, पाम्यो सफरी जहाज हो....(३) चउगति महाकांतारमा हुं, भमीयो वार अनंत हो, चरण - शरण हवे आवीयो, मने तार तार किरतार हो....(४) सेवना देव देवनी जो, पामी में कृत पुन्य हो, जन्म सफळ हुं गणुं ने, गणुं