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________________ 386 __(51) पार्श्वनाथ जिन स्तवन आज रूडी रढीयाळी, तारी आंगीने जोइ मारी, आंखलडी ठरी ठरी जाय छे, आज रूटुं रूपाळु तारु मुखलढुं जोइ, मारूं हैयुं तारा चरणे झुकाय छे, ॥१॥ मुर्ति तारी जोइ मारू दिलडं लहेराय छे, अलबेली आंगी जोइ आनंद उभराय छे, भक्तिथी भवदुःख जाय छे रे, ॥२॥ पतित पावन तुं करूणानिधान छे, परम कृपळु दिनबंधु भगवान छे, दर्शनथी दुःखडा जाय छे रे ॥३॥ अधम उद्धारण ओ दिनानाथ छो, दयाधन देव प्रभु पारस नाथ छो, दिलकुं दयाथी उभराय छे रे, ॥४॥ नागने बचाव्यों ते बलती आगथी, आत्मशान्ति आपी तेने मंत्र नवकारथी, धरणेन्द्र थइने पूजाय छे रे, ॥५॥ शंखेश्वर पार्श्वनाथ भक्ति श्रद्धा आपजे, सेवकने तारा चरणोमां राखजे, करूणासिंधु तुं कहेवाय छे रे, ॥६॥ (52) पार्श्वनाथ जिन स्तवन शंखेश्वर साहिब आप बिराजो, वढियार देशमा, तरह तरहनां फुलो चढे छे, गुच्छातणो मरकाव रे, घातिकर्मो दूर करीने, उतर्या छो भवपार रे, शंखे० ॥१॥ रन जडेलो मस्तके मुगुट, कानमें कुंडल सार रे, झलहल झलके तुज मुद्रा, अधिको आनंद अपाय रे, शंखे० ॥२॥ अश्वसेन राजा के नंदन, वामाराणी मात रे, वाणारसी नगरी ते शोभावी, शोभा तणो नहि पार रे, शंखे० ॥३॥ नाग नागणी ते ज उगारी, कीर्तिनो नहि पार रे, तुज मुख जोतां आनंदकारी, हैये हर्ष अपार रे, शंखे० ॥४॥ रत्नविजय विबुधनो सेवक, मोहन विजय गुण गाय रे, सेवक उपर कृपा करीने, तारजो दिन दयाल रे, शंखे० ॥५॥ (53) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : शंखेश्वर पार्श्वतारी,) तारा दर्शनथी भवदुःख जाय रे, भवि मन लागे प्यारी, केवी चमत्कारी ? तारा० ॥१॥ शंखेश्वरमां तूही बिराजे, महिमां तारो त्रिजगमाहि गाजे, आव्यो दर्शनने काजे, धन्य घडी धन्य आजे, तारा० ॥२॥ मूर्ति शोभे सुंदर पूराणी, दामोदर जिन वारे भराणी, (वी) केवी सुंदर लागे ? निरखतां भव दुःख भागे; तारा० ॥३॥ महा पुन्यो दये तुं मलीयो, मारा भवनो फेरो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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