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टलियो, हवे न छोड़े तारूं ध्यान, हे.. करूणा निधान, तारा० ॥४॥ काळ अनादि निगोदमां वसीयो, पुद्गलनां संगे हुं फसियो, हवे करतुं उध्धार, आतम तणा उध्धार, तारा० ॥५॥ विघ्न निवारण संकटचूरण, मनवांछित आशापूरण, बतलावो मुक्ति मिनारो, जावं छे भवने किनारे, तारा० ॥६॥ भवोभव तुमचरणोनी सेवा, हुं तो मांगु कुं देवाधिदेवा, तुं छे साचो मारोनाथ, शंखेश्वरा पार्श्वनाथ, तारा० ॥७॥ वामा उर सरोवर हंस,
अश्वसेन कुले अवतंस, दूरथी आव्यो तारी पास, पूरजो हर्षनी आस तारा दर्शनथी भवदुःख जाय रे० ॥८॥
(54) पार्श्वनाथ जिन स्तवन शंखेश्वर अलवेसर ताहरी, आश धरीने आव्या रे, सेवक सार हशे साहिबा, चिंतामणि मे पायो रे, ओळगडी अवधारो... ॥१॥ देव घणां में सेव्या पहेला, जिहां लगे तुं नवि मलियो, हवे भवांतर पण हुं तेहथी, किमहि न जाउं छळीयो रे ॥२॥ अतिशय ज्ञानादिक गुण ताहरो, दिसे छे प्रभु जेहवो, सुरज आगळ ग्रह गण दीसे, हरिहर दिपे ऐहवो.. ॥३॥ कलियुगे प्रगट तुज परचो, देखुं हुं विश्व मोझार, पुरिसादाणी पार्श्व जिनेश्वर, ब्राह्य ग्रहीने तारो.. ओ. ॥४॥ पुश्करावर्त घनाघन पामी, ओर छिल्लर नवि राचुं, कामकुंभ साचो पामीने, चित्त करे कोण? काचुं.. ओ. ॥५॥ जरा निवारी यादव केरी, सुर नरवर सहुँ पूज्यां, पार्थजी प्रत्यक्ष देखता दर्शन, पाप मेवासी ध्रुज्यां, ओ० ॥६॥ सो वाते एक वातडी जाणो, सेवक पार उतारो, पंडित उत्तमविजयनो सेवक, रनविजय जयकारा ओलगडी अवधारो जिनेश्वर ओळगडी अवधारो० ॥७॥
(55) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मुख खोल जरा यह कह दे खरा, तुं नही मैं ओर नहीं, तु नाथ मेरा मैं हु जान तेरी, तुझे क्युं विसराई जान तेरी, जब करम कटे और भरम फटे, तुं ओर नही में ओर नहीं ।१ | तुं हे इश मेरा में हुं दास तेरा, मुझे क्युं न करो अब नाथ खरा, जब कुमति टरे, और सुमति वरै, तुं ओर नही में ओर नही ।२। तुं हे पास जरा में हुं पास परा, मुझे क्युं न छोडावो