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तुम तणुं। तुज मुद्रा हो सुप्रसन्न देखके लटके वंछित आपशो। शुभ अनुभव हो विचमांहि दलाल के। सहज स्वभावे थापशो |७। मुज निश्चय हो एहवो छे स्वामि तो, अलगा पलक एक नवि रहो। तस मनथी हो अंतर नहि कांई के, वयणे आप तणो कहो । मुज साथे हो जेह छे एकतान के, एक मने ते ध्याईए । रढ मांडे हो बालक परे जेह के, विनती वयणे गाईए । ८ । कहेवानो हो एह तो व्यवहार के, विनति लोक शीखाववा, शुद्ध समकित हो जेहने छे हाथ के, अंतर कोई न भाववा। मृग लंछन हो कंचन वान काय के, अचिरा नंदन जग धणी। तुम ध्याने हो होय सुजस सुवास के, ज्ञानविमल प्रभुता घणी | ६ |
(23) श्री शान्ति जिन स्तवन तार मुज तार मुज तार जिनराज तुं, आज में तोहि दिदार पायो । सकल संपत्ति मिल्यो, आज शुभ दिन वल्यो, सुरमणि आज अप्पचिंत आयो। तार०।१। ताहरी आण हुं शेष परे शिरवहुं, निरवहुं भवभये चित्त शुद्धे । भमतां भवकानने सुरतरूंनी परे, तुं प्रभु ओळख्यो देव बुद्धे । तार०।२। अथिर संसारमा सार तुज सेवना। देवना देव तुज सेव सारे । शत्रुने मित्र समभावे बेहु गणे, भक्तवत्सल सदा बिरूद धारे। तार०।३ । ताहरा चित्तमा दास बुद्धे सदा, हुं वसुं एहवी वात दूरे | पण मुज चित्तमां तुहि जो नित वसे, तो किशुं कीजिये मोह चोरे। तार०।४। तुं कृपाकुंभ गतदंभ भगवंत तुं, सकल भविलोकने सिद्धि दाता। त्राण मुज प्राण मुज शरण आधार तुं, तुं सखा मातने तात भ्राता। तार०।५। आतमाराम अभिराम अभिधान तुज, समरतां दासनां दुरित जावे। तुज वदन चंद्रमा निशदिन पेखतां, नयन चकोर आनंद प्रवे। तार०।६। श्री विश्वसेन कुलकमल दिनकर जिस्यो। मन वस्यो मात अचिरा मल्हायो। शांति जिनराज शिरताज दातारमां, अभयदानी शिरे जग सवायो। तार०।७। लाज जिनराज अब दासनी तो शिरे, अवसरे मोद| मोज पावे। पंडितराय कवि धीरविमल तणो, शिष्य गुण ज्ञानविमलादि गावे। तार० | ८ |
(24) श्री शान्ति जिन स्तवन जीरे मारे शांति जिनेवर देव, अरज सुणो प्रभु माहरी जीरेजी जीरे