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( 45 ) पार्श्वनाथ जिन स्तवन ( राग : आजनो दिवस मने लागे )
समय समय सोवार संभारूं, तुज शुं लगनी जोर रे, मोहन मुजरो मानी लेजो, ज्युं जलधर प्रीति मोर रे माहरे तन धन जीवन तुंही, एहमां जुठ न जाणो रे अंतरजामी जगजन नेता, तूं कीहां नथी छानो रे, जेणे तुजने हैडे नवि ध्यायो, तास जनम कुण लेखे 'रे, काचे राचे ते जन मूरख, रत्नने दुर उवेखे रे, सुरतरू छाया मूकी गहरी, बावळ तळे कुण बेसे रे, ताहरी ओलग लागे मीठी, किम छोडाये विशेषे रे, वामानंदन पास प्रभुजी, अरजी चित्तमां आणोरे, रूप विबुधनो मोहन पभणे, निज सेवक करी जाणो रे, (46) पार्श्वनाथ जिन स्तवन
श्री पार्श्वजी प्रगट प्रभावी, तुज मूर्ति मुज मन भावी रे, मन मोहना जिनराया, सुर नर किन्नर गुण गाया रे, मन । जे दिनथी तुज मूर्ति दीठी, तेदिनथी आपद नीठी रे, । मटकाळु मुख सुप्रसन्न, देखत रीझे भवि मन रे, समता रस केरा कचोला, नयणां दीठे रंग रोला रे.... हाथे न धरे हथियार, नहि जपमालानो प्रचार रे, उत्संगे न धरे वामा, जेहथी उपजे सवि कामा रे.... न करे गीत - नृत्यना चाला, ए तो प्रत्यक्ष नटना ख्याला रे, न बजावे आपे वाजा, न धरे वस्त्र जीरण साजा रे .... इम मूर्ति तुज निरूपाधि, वीतराग पणे करी साधी रे, कहे मानविजय उवज्झाया, में अवलंब्या तुज पाया रे ..... ( 47 ) पार्श्वनाथ जिन स्तवन
अब मोहे एैसी आय बनी, श्री शंखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं एक धनी । अब० तुम बिनु कोउं चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुनी, मेरो मन तुज उपर रसियो, अलि जिम कमल भणी । अब० तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज घरनी, नाम जपुं निशि वासर तेरो, ए मुज शुभ करनी । अब० कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी, नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारूं दुःख हरनी । अब० मिथ्यामति बहु जन है जगमें, पद न धरत धरनी, उनका अब तुज भक्ति प्रभावे, भय नहि एक कनी । अब० सज्जन-नयन सुधारस-अंजन, दुर्जन रवि भरनी, तुज मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लील धनी । अब०