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नंद छे, व्हालो, समुद्र विजय छे तात, कृष्ण मोरारीना बंधु वखाणुं, यादव कुल मोझार रे, प्रभु नेम विहारी, बाल ब्रह्मचारी आवे छे. नेमजी श्याम ।।१॥ अंगज फरके छे जमणुं, व्हेनी अपशुकन मने थाय, जरुर व्हालो पाछो ज फरशे, नही ग्रहे मम हाथ रे. मने दुःख छे भारी, कहुं हुं आवारी. ॥२।। परणुं तो बेहनी तेहने परj, बीजां पुरुष भाई बाप, हाथ न ग्रहे मारो के ओमनो, मस्तके मुकावु हाथ रे, हुं थाउं व्रत धारी, बालकुमारी. ।।३।। संयमधारी राजुलनारी, चाल्या-छे गढगीरनार, मारगे जाता मेहुलो वर्षे, भींजाया सतीना चिर रे, गया गुफा मोझारी, मनमां विचारी. ॥४॥ चीर सूकवे छे राजुलनारी, नग्न पणे तेणीवार, रहनेमि मुनि काउसग्गे उभा, रुपे मोह्या तेणी वार रे, सुणो भाभी हमारी, थाओ घरबारी. ॥५॥ वमेलो आहार कुकुना वंछे, सुणो दियरजी आवार, मुजने वमेली जाणो दियरजी, शाने खोवो व्रत चार रे, हुं संयम सुखकारी, दुषण टाळी. ॥६॥ रहनेमी मुनि राजीमतिने, उपन्यं छे केवलज्ञान, चरम शरीरे मोक्षे सीधाव्या, सिध्या आतम काज रे, वीर विजय आवारी, गुण गाउं भारी, अती सुखकारी. ॥७॥
(8) श्री नेमनाथ जिन स्तवन सखी श्रावणनी छठ्ठ उजली, भली विजळीनो झबकार रे, अती वहेला पिउजी रह्या, राणी राजुलने दरबार रे, पियुजी वसे कैलासमां. ॥१॥ पाछा तोरण आवी वव्यां, करी अमने ते कंत वियोगी रे, कंसार मुज चाख्या विना, वाल्हो हुओ छे भिक्षानो भोगी रे. ॥२॥ रुडी श्याम घटा गगने रही, वाल्हो शीयल सुंदर वाने रे, सहसावने समता धरी, रह्या मौन ते उज्वल ध्यान रे. ॥३॥ कोई दोष विनादयीतातजी, मने मेली छे बाले वेश रे, यौवनवयमां ओकली, तजी पीयुजी चाल्या परदेश रे. ॥४॥ सहु यादव साखे नवी दीओ, मारा हाथ नी उपर हाथ रे, हाथ मेलावीश हुँ मस्तके, देव देवी साखे जगनाथ रे. ॥५॥ अम राजुल राग विराग से, नेमनाथ नो मंत्र जपाय रे, कालांतरे प्रभु केवली, सुणी राजुल वंदन जाय रे. ॥६।। चरण धरे भव निसुणी सुणी, शिव पहुंता सलुणा नाहरे, गोत्र विनाशे उपनो, गुण अगरु लघु अवगाह रे. ।।७।। सिद्धि सादि अनंते भंगशुं, रंग रसे बनी खरी प्रित रे, श्री शुभवीर-विनोद स्युं, नित्य आवे छे खिण खिण चित्तरे. ॥८॥