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तारी मुखनी सुंदर, अखीयनमें अविकार, सविकारी अमे आव्या शरणे, तार तार मुझ तार...तारो० ॥८॥ मन मोहन प्रभु अरज अमारी, सुणजोने आवार, सुयश मागे सेवा तमारी, तरवा भव जल पार...तारो० ॥६॥
(3) श्री सामान्य जिन स्तवन रसिया श्री अरिहंत प्रभु भगवंत नमोडस्तु ते रे लो, रसिया पारगतोडभयदं विभवदं नमोडस्तु ते रे लो; रसिया० भव्यांभोज विबोधजनक सम जिनवरु रे लो, रसिया० दुरिततमं तरणि सम दोषमपाहरु रे लो०. ॥१॥ रसिया० हरे समं विमलास्य प्रभु नीरजंदलं रे लो; रसिया० विध्वंष्टमीस भाल विशाल सुकोमलं रे लो; रसिया० दशनतलि सित केशवितान सितेतरं रे लो, रसिया० अष्टवरग्रह णार्चित कुंकुम केसरं रे लो०. ॥२॥ रसिया० हरिणकं हरिवर्ण सुकांति विसरती रे लो, रसिया० वृक्ष कपाट करोभय भुंगल गजगति रे लो; रसिया० शांतरागरुचिनाद्भूत तव सुंदर वपु रे लो, रसिया कर्माष्टक दल पंक्ति विनाशित गत रिपु रे लो०. ॥३॥ रसिया बाह्य अभ्यंतर रोग गता विगतं दुःखं रे लो, रसिया० लव सप्तम सुर तरमादप्यधिकं सुखं रे लो; रसिया० सिद्धार्था दुग केवल कैवल्य वरेरे लो, रसिया० ईदग शांति कुतर्क मया हृदये धर्यो रे लो. ॥४॥ रसिया० भव पादप उन्मूल सुखदा दुःखहरि रे लो, रसिया० अकादश जिन सेव मया ह्रदय धरी रे लो; रसिया० ओक विहिन पंच वरगमा वशि प्रभु रे लो, रसिया० विजयां कित शुभ सेवक वीर नमे रे लो. ॥५॥
(4) श्री सामान्य जिन स्तवन जीवजीवन प्रभु म्हारा, अबोलडां शानां लीधां छे राज, तमे अमारा अमे तमारा, वासनिगोदमां रहेतां; अबोलडां० काल अनंत स्नेहि प्यारा, कदिय न अंतर करता, बादर स्थावरमां बेहु आपण, काल असंख्य निगमता अबोलडां०. ॥१॥ विकलेन्द्रियमां काल संख्याता, विसर्या नवि विसरता; नरकस्थाने रहया बेहु साथे, तिहां पण बहु दुःख सहता० .....अबोलडां०. ॥२॥ परमाधामी सनमुख आपण, टगटग नजरे जोता; देवना भवमा ओक विमाने, देव नां सुख अनुभवता०...अबोलडां०... ॥३॥ ओकण पासे अक