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प्राणी, प्रणमो हित आणी, मोक्षनी ओ निशाणी. ३ वाघेश्वरी देवी, हर्ष हियडे धरेवी, जिनवर पाय सेवी, सार श्रद्धा वरेवी; जे नित्य समरेवी, दुःख तेहना हरेवी, पद्मविजय कहेवी, भव्य' संताप खेवी. ४
___(71) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति शान्तिनाथ भजो भगवंत, आठ करमनो कीधो अंत, जिन पाम्या शिवपुरीनो वास, भविजननी ते पुरो आश. १ ऋषभादिक जिन चोवीश, दुर्जय मन्मथ मर्दन इश, भविकमन विकाश्युं चंद, ते नमतां मुज होय आनंद. २ आगम भाख्यो अरिहंत तणो, ते नमतां मुज उलट घणो, भणे गणे जे भावे करी, ते पामे निश्चे शिवपुरी. ३ शान्तिनाथ शासननी सूरी, विघन निवारे बहुगुण भरी, चउंविह संघनी सुखकर सदा, पभणइ देवविजय कवि मुदा. ४
(72) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति प्रणत सुरेसर, असुर नरेसर, शांति जिनेश्वर रायाजी, अचिरानंदन भुवन आणंदन, चंदन चरचित कायाजी; तरण शरण तनु वरण कंचनसम, हरण लंछन प्रभु पायाजी, श्री लक्ष्मीसागर सूरीश पूरंदर, प्रणमे शिवसुख दायाजी. १ सिद्धाचल श्री आदिजिनेसर, उज्जंत नेमिकुमारजी, तारंगे श्री अजितजिनाधिप, सुरत पास उदारजी; भरूअच्छे मुनिसुव्रतस्वामी, प्रबल प्रताप अपारजी, श्री लक्ष्मीसागर सूरीश पुरंदर, वंदे वारंवारजी. २ अंग अने उपांग अनुपम, मूलसूत्र सुविचार जी, छेद ग्रंथने दश पयन्ना, नंदी अनुयोग द्वारजी; इत्यादिक अरथे जिन विरच्यां, सूत्रथकी गणधारजी, श्री लक्ष्मीसागर सूरीश पुरंदर, उपदेशे भवि तारेजी. ३ चरणे नेउर रमझम करती, लीलालंकृतधारीजी, कटि तटि मेखल नाके मोती, श्रुतदेवी मनोहारीजी; श्री लक्ष्मीसागरसूरीश पुरंदर, दिन दिन सा जयकारीजी, प्रमोदसागर हरखे इम भाखे, संघ सकल सुखकारीजी. ४
(73) श्री शान्तिनाथ जिन स्तुति सोलमा शान्तिजिनेसरू अ, शान्तिकरण दुःख वार तो, सर्वारथथी अवतर्या अ, अचिरा गरभे सुखकार तो; भादरवा शुद सातमे , मरकी