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करूं छु, चरणे पड्यो हुं स्वामी हो राज० (७) दिन-दयाळ दया दिल धारो, दारिद्र दुःख विदारी हो राज उदय रत्न कहे आज प्रभुजी, लेजो भवथी उगारी हो राज० (८)
(8) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन श्री शंकर चंद्रप्रभु रे लो, तुं ध्याता जगनो विभु रे लो । तिणे हुं ओलगे आवीयो रे लो, तुं पण मुज मन भावीयो रे लो । १ दीधी चरणनी चाकरी रे लो, हुं से, हरखे करी रे लो | साहिब सामु निहाळजो रे लो, भवसमुद्रथी तारजो रे लो । २ अगणित गुण गणवा तणी रे लो, मुज मन होंश धरे घणी रे लो | जिम नभने पाम्या पखी रे लो, दाखे बाळक करथी लखी रे लो । ३ जो जिन तुं छे पांशरो रे लो, कर्म तणो शो आशरो रे लो । जो तुमे राखशो गोदमां रे लो, तो किम जाशुं निगोदमां रे लो । ४ जब ताहरी करूणा थई रे लो, कुमति कुगति दूरे गई रे लो | अध्यातम रवि उगीयो रे लो | पाप तिमिर किहां पुगीयो रे लो । ५ तुज मूरति माया जीसी रे लो | उर्वशी थई उरे वसी रे लो | रखे प्रभु टाळो एक घडी रे लो, नजर वादळनी छांयडी रे लो । ६ ताहरी भक्ति भली बनी रे लो, जिम औषधि संजीवीनी रे लो । तन मन आनंद उपन्यो रे लो, कहे मोहन कवि रूपनो रे लो । ७ (9) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन (हारे मारे धर्म जिणंद| लागी पूरण) ___हारे मारे चंद्रवदनजिन चंद्रप्रभु जगनाथजो । दीठो मीठो इठो जिनवर आठमो रे लो। हारे मारे मनडानो मानीतो प्राण आधार जो। जग सुखदायक जंगम सुर शाखी समो रे. लो। १ हारे मारे शुभ आशय उदयाचलः समकित सुरजो। विमल दशा पूरवदिशि उग्यो दीपतो रे लो। हारे मारे मैत्री मुदिता करुणाने माध्यस्थ जो। विमल विवेक सुलंछन कमळ विकासतो रे लो। २ हारे मारे सद्हणा अनुमोदन परिमल पूरजो। पसर्यो मन मानस सर अनुभव वायरो रे लो। हारे मारे चेतन चकवा उपशम सरोवर नीरजो। शुभमति चकवी संगे रंगरमत करे रे लो। ३ हारे मारे ज्ञान प्रकाशे नयन खुल्यां मुज दोयजो। जाणे रे षटद्रव्य स्वभाव यथापणे