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सोनानी, दीसे देरा दधानी, ओक टुंके मुनि अणशण करता, ओक टुंके मुनि व्रत तप करता, ओक टुंके उतरता; सूरजकुंड जल अंग लगायो, महिपालनो कोढ गमायो, तेने ते समुद्र निपायो, सवालाख शत्रुजय महामत, पापतणी तिहां न रहे रातम, सुणतां पवित्र आतम. ३ रमणिक भोयरुं गढ रढीयालो, नवखंड कुर तीर्थ निहालो, भविजन पाप पखालो, चोखाखाण ने वाघणपोळ, चंदनतलावडी उलखा जोळ, कंचन भरोरे अंघोळ; मोक्षबारीनो जग जश मोटो, सिद्धशिला उपर जइ लोटो, समकित सुखडी बोटो, सोना गभारे सोवन्न जाळी, जारो जिननी मूर्ति रसाली, चक्केसरी रखवाली. ४
(24) श्री शQजय स्तुति श्रीशेजूंजय आदिजिनआया, पूर्व नव्वाणुं वारो जी, अनंत लाभ तिहां जिनवर जाणी, समोसर्या निरधारो जी; विमलगिरिवर महिमा मोटो, सिद्धाचल इणे ठामो जी, कांकरे कांकरे अनंता सिद्धा, अकसोने आठ गिरि नामो जी. १ पुंडरिकपर्वत पहोलो कहीये, ॲसी योजन- मान जी, वीश कोडीशुं पांडव सिद्धा, त्रण कोडीशुं राम जी; शांब–प्रद्युम्न साडी आठ कोडी सिध्या, दशकोडी वारिखिल्ल जाणोजी, पांच कोड| पुंडरिक गणधर, सयल जिननी वाणी जी. २ सयल तीर्थनो राजा ओ वली, विमलाचल गिरिवरिये जी, सात छठ्ठ दोय अठ्ठम करीने, अविचल पदवी लहीये जी; छ'री पाली जात्रा करीये, केवल कमला वरीयेजी, सकल सिद्धांतनो राजाओ वली, तीर्थ हृदयमां धरीये जी. ३ श्री सिद्धक्षेत्र शेर्जेजे जाणुं, श्री आदिसर राया जी, गोमुख जक्ष चक्केसरी देवी, सेवे प्रभुना पाया जी; शासनदेवी समकितधारी, सानिध करे संभारी जी, रंगविजय गुरु इणिपरे जंपे, मेरूविजय जयकारी जी. ४
(25) श्री शचुंजय स्तुति ... सीमंधरने पूछे इंदा, विनतडी अवधारो जी, भरतक्षेत्रमा वडु कुण तीरथ, ते मुजने निरधारो जी; वलतुं श्रीजिन मुखे इम भाखे, सुण इंदा मुज वात जी, सकल तीरथमां श्रीशेजेजो, तिहां भरतेसर तात जी. १ अतीत अनागत ने वर्तमान, बहोत्तर जिनवर वंदु जी, विहरमान जिन वीशे वंदु,