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(47) संभव जिन स्तुति श्री संभव जिन मुरति सुंदर, जगजन मोहन गारीजी, सेवक जन मनवांछित पुरण, कल्पवेली अवतारीजी, बावना चंदन भरीय कचोळा, टोळे बहु नरनारीजी, संभव जिनवर पूजो भविजन, मुक्तिवधू लहु सारीजी, १ श्री नंदीधरने मानुषोत्तर, इक्षुकार वैताढ्यजी, कुलगिरि प्रमुख जिहां शाश्वतजिन, वंदु चारे नामजी, अतीत अनागत ऋषभादिक जिन, शत्रुजय अर्बुद वंदोजी, इत्यादिक तीरथ जिन सर्वे, पुजी पाप निकंदोजी, २ दो नवकारशी पोरसीतणा छ, सत पुरिमठ्ठ एगठाणजी, निवी विगइ नव एग बियासण, आयंबिल आठ आगारोजी, छ पाणस्स चार चरिम पच्चक्खाण, ए आगम विचारजी, मन शुद्धे आराधो भविका, जिम पामो भवपारजी, ३ अरिहंत देव अहर्निश आराधो, साधुतणा गुण रंजेजी, धर्मध्यान धरे जिन भाख्यो, दुष्कृत दुरित निकंदोजी, तेह तणा तुं विघ्न निवारे, तुं दुरितारी देवीजी, विबुधविजय सौभाग्य समरी, जिन चरणाम्बुज सेवीजी, ४
(48) श्री अभिनन्दन जिनेन्द्र स्तुति ___ त्वमशुभान्यभिनन्दन नन्दिता,-सुरवधूनयनःपरमोदरः,स्मरकरीन्द्रविदारणकेसरिन्, ! सुरवधू नयनः परमोदःर, १ जिनवराः प्रयतध्वमितामया, मम तमोहरणाय महारिणः,! प्रदधतो भुवि विश्वजनीनता, ममतमोहरणा यमहारिणः २ सुमनतां मृतिजात्यहिताययो, जिनवरागमनो भवमायतम्; प्रलद्युतां नय निर्मिततोद्धता,जिनवरागमनोभवमाय तम्. ३ विशिखशंखजुषा धनुषाडस्तसत्, सुरभिया ततनुन्नमहारिणा; परगतां विशदामिह रोहिणी सुरभियाततनुं नम हारिणा, ४
__(49) श्री ज्ञान पंचमी स्तुति श्रीनेमिः पंचरुप,स्त्रिदशपतिकृत, प्राज्य जन्माभिषेक; श्चचत्पंचाक्षमत्त, द्विरदमदभिदा, पंचवक्त्रोपमानः; निर्मुक्तः पंचदेह्याः, परमसुखमय, प्रास्तकर्म प्रपंचः, कल्याणं पंचमीस,त्तपसि वितनुतां, पंचमज्ञानवान्वः १ संप्रीणन् सच्चकोरान्, शिवतिलकसमः, कौशिकानंद मूर्तिः, पुण्याब्धिः प्रीतिदायी,