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उत्साही; जिनप्रतिमा जिनवर सरखी, जुओ सूत्र उववाइ निरखी. (५५) ___ (वस्तु) भरते कीधो भरते कीधो, प्रथम उद्धार, त्रिभुवन कीर्ति विस्तरी; चंद्रसुरज लगेनाम राख्युं, तिणे समय संघपति केटला हुवा. सो इम शास्त्रे भांख्युं, कोडि नवाणुं नरवरा, हुवा नेव्याशी लाख, भरत समय संघपति वळी, सहस चोराशी भाख. (५६)
(राग : रघुपति राघव राजा राम) (ढा. ७) भरतपाटे हुआ आदित्ययशा, तस पाटे तस सुत महायशा, अतिबल भद्र अने बलवीर्य, कीर्तिवीर्य अने जलवीर्य. (५७) ओ साते हुआ सरखी जोडी, भरत थकी पुरव छ कोडी; दंडवीर्य आठमे पाटे हुवो, उद्धार तेणे कराव्यो नवो. (५८) इंद्र सोइ प्रशंस्यो घj, नाम अजवाल्युं पूर्वज तो; भरत तेणीपरे संघवी थयो, बीजो उद्धार ते अहनो कह्यो. (५६) भरत पाटे मे आठे वली, भुवन अरीसामां केवली; इणे आठे सवि राखी रीत, अणे न लोपी पूर्वज रीत. (६०) अकसो सागर वित्या जिसें, इशानेन्द्र विदेहमां तिसे; जिनमुख सिद्धिगिरि सुणी विचार, तेणे कीधो त्रीजो उद्धार. (६१) ओक कोडी सागर वली गयां, दीठां चैत्य विसंस्थुल थयां; माहेद्र चोथो सुरलोकेन्द्र, कीधो चोथो उद्धार गिरेन्द्र. (६२) सागर कोडी गया दशवली, श्री ब्रह्मेन्द्र घj मनरुली; श्री शत्रुजय तीर्थ मनोहार, कीधो तेणे पांचमो उद्धार. (६३) अक कोडी लाख सागर अंतरे, चमरेन्द्रादिक भवन उद्धारे; छठो इंद्र भवनपति तणो, अ उद्धार विमलगिरि सुणो. (६४) पचास कोडी लाख सागर तणुं, आदि अजित विचे अंतर भ[; तेह विचे सुक्ष्म हुवा उद्धार, ते कहेतां नविलाभे पार. (६५) हवे अजित बीजा जिनदेव, शत्रुजय सेवा मिष हेव; सिद्धक्षेत्र देखी गहगह्या, अजितनाथ चोमासु रह्या. (६६) भाई पीतराई अजितजिन तणो, सागर नामे बीजो चक्रवर्ति भणो; पुत्र मरणे पाम्यो वैराग, इंद्रे बुझवियो महाभाग. (६७) इंद्रवचन हियडा मांहे धरी, पुत्र मरण चिंता परिहरि; भरत तणीपरे संघवी थया, श्री शजय गिरियात्रा गया. (६८) भरत मणिमय बिंबविशाळ, कर्या कनक प्रासाद जमाल; ते देखी मन हरख्यो घj, नाम संभाणु पूर्वज तणु. (६६) जाणी पडतो काल विशेष, रखे विनाश उपजे रेष; सोवन गुफा पश्चिमदिशि जीहां,
शत्रुजय माई पीतराई अजिताभावियो महाभाग. संघवी थया,