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________________ 206 तुरंगम सवि मलिओ, कोटी अढार निहाल. भ० (३६) त्रण कोटी साथे वेपारीयाओ, बत्रिस कोडी सुथार. शेठ सार्थवाह सामटाओ, रायराणानो नहिं पार. भ० (३७) नवनिधिने चौदरयणशुं ओ, लीधो लीधो सवि परिवार; संघपति तिलक सोहामणुंओ, भाले धराव्युं सार. भ० (३८) पगपग कर्म निकंदता अ, आव्या आव्या आसन जाम; गिरिदेखी लोचन ठाओ, धन्य धन्य शत्रुजय नाम. भ० (३६) सोवन फुल मुक्ताफले ओ, वधाव्यो गिरिराज; देई प्रदक्षिणा-पाखतीओ, सीध्यां सघळा काज. भ० (४०) (प्रभु पास, मुखडं जोतां-देशी) (ढा. ६) काज सीधा सकल हवे सार, गिरि दीठे हर्ष अपार, ओ गिरिवर दरिसण जेह, यात्रा फल कहीजे तेह. (४१) सुरजकुंड नदी शेजूंजी, तीर्थजले नाह्यां रंजी; रायण तळे ऋषभजिणंदा, पहेला पगला पुजो नरिंदा. (४२) वळी इंद्र वचन मन आणी, श्री ऋषभर्नु तीरथ जाणी; तव चक्री भरत नरेश, वार्धकिने दीधो आदेश. (४३) तेणे शत्रुजय उपर चंग, सोवन प्रासाद उत्तंग, निपायो अति मनोहार, ओक कोष उचो चउबार. (४४) गाउ दोढ विस्तारे कहीओ, सहस धनुष पहोलपणे लहिजे; अकेके बारणे जोई, मंडप अकवीशज होइ. (४५) इम चिहुं दीसे चोराशी, मंडप रचियो सुप्रकाशी; तिहां रयणमय तोरण माळ, दीसे अति झाकझमाळ. (४६) विचे चिहुं दीसे मूल गंभारे, थापी जिन प्रतिमा चारे; मणिमय मुरति सुखकंद, थाप्या, श्री आदि जिणंद. (४७) गणधर वर पुंडरिक केरी, थापि बिहुं पासे मुर्ति भलेरी; आदिजिन मुर्ति काउस्सग्गीआ, नमि विनवी बेउ पासे ठविया. (४८) मणि सोवन रुप प्रकार, रची समवसरण सुविचार; चिहुं दीसे चउधर्म कहंता, थापी मुरति श्री भगवंता. (४६)भरतेसर जोडी हाथ, मुरती आगळ जगनाथ; रायण तले जमणे पासे, प्रभु पगला थाप्या उल्लासे. (५०) श्री नाभि अने मरुदेवी, प्रासादरों मुर्ति करेवी; गजवर खंधे लई मुक्ति, कीधी आईनी मुर्ति भक्ति. (५१) सुनंदा सुमंगळा माता, ब्राह्मी सुंदरी बेन विख्याता; वळी यक्ष गोमुख चक्केसरी देवी, तीरथ रखवाल ठवेवी. (५३) इम प्रथम उद्धारज कीधो, भरते त्रिभुवन जस लीधो; इंद्रादिक कीर्ति बोले, नहि कोई भरत नृप तोले. (५४) शत्रुजय महातम मांहि, अधिकार जो जो
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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