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तुरंगम सवि मलिओ, कोटी अढार निहाल. भ० (३६) त्रण कोटी साथे वेपारीयाओ, बत्रिस कोडी सुथार. शेठ सार्थवाह सामटाओ, रायराणानो नहिं पार. भ० (३७) नवनिधिने चौदरयणशुं ओ, लीधो लीधो सवि परिवार; संघपति तिलक सोहामणुंओ, भाले धराव्युं सार. भ० (३८) पगपग कर्म निकंदता अ, आव्या आव्या आसन जाम; गिरिदेखी लोचन ठाओ, धन्य धन्य शत्रुजय नाम. भ० (३६) सोवन फुल मुक्ताफले ओ, वधाव्यो गिरिराज; देई प्रदक्षिणा-पाखतीओ, सीध्यां सघळा काज. भ० (४०)
(प्रभु पास, मुखडं जोतां-देशी) (ढा. ६) काज सीधा सकल हवे सार, गिरि दीठे हर्ष अपार, ओ गिरिवर दरिसण जेह, यात्रा फल कहीजे तेह. (४१) सुरजकुंड नदी शेजूंजी, तीर्थजले नाह्यां रंजी; रायण तळे ऋषभजिणंदा, पहेला पगला पुजो नरिंदा. (४२) वळी इंद्र वचन मन आणी, श्री ऋषभर्नु तीरथ जाणी; तव चक्री भरत नरेश, वार्धकिने दीधो आदेश. (४३) तेणे शत्रुजय उपर चंग, सोवन प्रासाद उत्तंग, निपायो अति मनोहार, ओक कोष उचो चउबार. (४४) गाउ दोढ विस्तारे कहीओ, सहस धनुष पहोलपणे लहिजे; अकेके बारणे जोई, मंडप अकवीशज होइ. (४५) इम चिहुं दीसे चोराशी, मंडप रचियो सुप्रकाशी; तिहां रयणमय तोरण माळ, दीसे अति झाकझमाळ. (४६) विचे चिहुं दीसे मूल गंभारे, थापी जिन प्रतिमा चारे; मणिमय मुरति सुखकंद, थाप्या, श्री आदि जिणंद. (४७) गणधर वर पुंडरिक केरी, थापि बिहुं पासे मुर्ति भलेरी; आदिजिन मुर्ति काउस्सग्गीआ, नमि विनवी बेउ पासे ठविया. (४८) मणि सोवन रुप प्रकार, रची समवसरण सुविचार; चिहुं दीसे चउधर्म कहंता, थापी मुरति श्री भगवंता. (४६)भरतेसर जोडी हाथ, मुरती आगळ जगनाथ; रायण तले जमणे पासे, प्रभु पगला थाप्या उल्लासे. (५०) श्री नाभि अने मरुदेवी, प्रासादरों मुर्ति करेवी; गजवर खंधे लई मुक्ति, कीधी आईनी मुर्ति भक्ति. (५१) सुनंदा सुमंगळा माता, ब्राह्मी सुंदरी बेन विख्याता; वळी यक्ष गोमुख चक्केसरी देवी, तीरथ रखवाल ठवेवी. (५३) इम प्रथम उद्धारज कीधो, भरते त्रिभुवन जस लीधो; इंद्रादिक कीर्ति बोले, नहि कोई भरत नृप तोले. (५४) शत्रुजय महातम मांहि, अधिकार जो जो