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परिणती तीव्र कषायनी, भटकावे चोराशी रे, नाना जन्म धरावीने, नाखे गलामां फांसी रे... (३) दुखडा नरक निगोदमां, कहेता न आवे पार रे, छेदन भेदन बहु सह्यां, परमाधामीना मार रे... (४) अवर नही कोई विश्वमां, तुज विण तारण हार रे, एहवू जाणी आवीयो, स्वामी तुज दरबार रे,... (५) प्रीत पुरातन दाखवो, निज गुण आपो नाथ रे, हुं भवकादवमां खुंच्यो, उगारो देई हाथ रे,... (६) धनदोलत मागु नहि, छे मम ए अरदास रे, त्रिभुवन तिलक बोलावजो, मम सेवक तुम पास रे,...(७) ।
(29) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : ले के पहेला प्यार)
पार्थजी तोरा रे... पाय, पलकमें छोड्या नवि जाय (२) साहिबा तुमसे लगन लगी (१) लगी लगी आंखीयाने, रही रे लोभाई, दुनियामां दुजो कोई, आवे न दाई, पार्श्व० (२) आछी आछी आंगीयाने, रंग अनुप, अजब बन्युं छे साहिबा आजचं रूप (३) शिर कान कर हैये, सोहे उदार, मुगट कुंडल बाजुबंधने हार,....पार्श्वजी० (४) देवाधिदेव तुं तो दिनदयाळ, त्रिभुवन नायक तुजने, नमु त्रणकाळ....पार्धजी० (५) तुज पद पंकज मुज मन ,ग, चितमा लाग्यो छे, साहिबा चोळनो रंग० (६) लंबी लंबी बाउडीने बडेबडे नेण, सुरतरू सरीखो साहिबा शिवसुख देण० (७) जूनी जूनी मुरतिने ज्योत अपार, सुरत देखीने प्रभुनी मोह्यो आसंसार,० (८) सतरसें एंशी समे, चैतर मास, पूरण मासे ते पहोती पुरण आश० (६) उदयरल वाचक वदे एम, पार्श्वशंखेधर जोता वाध्यो छे प्रेम० (१०)
(30) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - शास्त्रीय) तार मुज तार मुज, तार त्रिभुवन धणी, पार उतार संसार स्वामी, प्राण तुं त्राण तुं शरण आधार तुं, आतमाराम मुज तुंही कामी, (१) तुं ही चिंतामणी, तुं ही मुज सुरतरु, कामघट कानधेनु विधाता, सकल संपति करुं, विकट संकट हरु,....पार्थ शंखेश्वरो मुक्तिदाता, (२) पुण्य भरपुर अंकुर मुज जागीयो, भाग्य सौभाग्य मुज नूर वाध्यो रे, सकल वांछित फल्यो, माहरो दिन वव्यो, पार्थ शंखेश्वरो देव लाध्यो(३) मूर्ति मनोहारीणी, भवजलधि तारणी, निरखता नयने आनंद हुओ, पार्श्वप्रभु भेटीया पातिक