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कुल चंद प्यारो 'ज्ञान - विमल' प्रभु गुण गावे, भवोभव तुम चरणोनी सेवा, मारा पूरा करजो कोड, मारी साथे पारस बोल....चिंतामणी० (५) (26) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - हवे नहि छोडुं तारी चाकरी)
पार्थ शंखधर भेटीये रे लोल, मेटीए विघ्नविकाररे वालेश्वर, पार्श्व शंखेश्वर, (२) भेटीये रे लोल० अद्भुत कीर्ति कळियुगे रे लोल, भविजनने आधार रे....(२) देश देशना-जन घणा रे लोल, यात्रा करवा काज रे....आवे अति उलट भर्या रे लोल, लेइ लेइ पूजा समाज रे.... एही ज भावना भावता रे लोल, भवजल तरवा नाव रे.... कमठ हठी हठ भंजणो रे लोल, रंजणो जग जन चित्त रे.... साथ मिल्यो ए ताहरो रे लोल, किधो जन्म पवित्र रे.... वामानंद वालहो रे लोल, प्रभावतीना नाथ रे, 'ज्ञानविमळ' प्रभु बाह्यथी रे लोल, ग्रहीने करो सनाथ रे....
(27) पार्श्वनाथ जिन स्तवन तारी मूर्तिनुं नहि मूल रे, लागे मने प्यारी रे, तारी आंखडीए मन मोयुं रे, जाउं बलिहारी रे....(१) त्रण भुवननुं तत्त्व, लहीने, निर्मळ तुंही निपायो रे, जगसघळो नीरखीने जोता, तारी होडे को नहि आयो रे । (२) त्रिभुवन तिलक समोवड ताहरी, सुंदर सुरती दीसे रे, कोडी कंदर्प सम रूप निहाळी, सुरनरनां मन हीसे रे (३) ज्योति स्वरूपी तुं जिन दीठो, तेहने न गमे बीजुं कांई रे...ज्यां जइए त्यां पुरण सघळे, दीसे छे तुंही ज तुंही रे (४) तुज मुख जोवाने रढ लागी, तेहने न गमे घरनो धंधो रे, आळपंपाळ सवि अळगी मुकी, तुजशुं मांड्यो प्रतिबंधो रे, (५) भवसागरमां भमता भमता, प्रभु पाईनो पामी आरो रे, उदयरत्न कहे बाह्य ग्रहीने, सेवक पार उतारो रे (६) (28) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग - अय मेरे प्यारे सनम)
वामानंदन वंदना चरणोमां अवधारो रे... (२) करी करुणा करुणानिधि, भवसायरथी तारो रे... (१) एक समय संसारमां, आप साथे रमीया रे, तुमे निर्मोही थई गया, अमे भव अटवीमां भमीया रे... (२)