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(135) श्री पार्श्वनाथ जिन स्तुति । श्री पार्थजिनेश्वर, पुजा करु त्रण काळ, मुज शिवपुर आपो, टाळो पापनी जाळ, जिन दरिशण दिठे, पहोंचे मननी आश, राय राणा सेवे, सुरपति थाये दास,....१ विमलाचल आबु, गढ गिरनारे नेम, अष्टापद समेत, पांचे तीरथ एम, सुर असुर विद्याधर, नरनारीनी कोड, भली जुगते ध्यावं, वांदु बे करजोड...२ साकरथी मीठी, श्री जिन केरी वाणी, बहू अर्थ विचारी गुंथी गणधर जाणी, तेह वचन सुणीने, मुज मन हर्ष अपार, भवसायर तारो, वारो दुर्गतिवार....३ काने कुंडळ झळके, कंठे नवसेरो हार पद्मावती देवी, सोहे सवि शणगार, जिनशासन केरा, सघळां विघ्न निवार पुन्यरत्नने जिनजी, सुख संपति हितकार....४
(136) श्री समवरण भावगर्भित पार्श्वजिन स्तुतिः देंद्रेकि धपमप, धुदुकी धोंधों, घ्रसकि धर धप धोरवम्, दोंदोंकी दोंदों दाग्डिदि दाग्डिदीकि, द्रमकि द्रण रण द्रेणवम्; झझिझंम कि झेंझें, झणण रण रण निजकि निज्जन रंजनम्, सुरशैल शिखरे भवति सुखदं पार्थ जिनपति मज्जनम्. १ कट रेंगिनि थोगिनि, किटती गिगडदां, धुधुकि घुटनट पाटवम्, गुण गुणण गुण गण, रणकी णे णे, गुणण गुण गण गौरवम्, झझि झें की झें झणण रण रण, निज जन न जन जन सज्जना, कलयन्ति कमला ,कलित कलमल मुकलमिस महेजिनः २ ठकि ट्रेंकी - - ठाहि ठहीक, ठाहि पट्टा ताड्यते, तल लोंकि लों लों, त्रेषि त्रेषिनी, डेंषि डॅषिनि वाद्यते; ओं ओंकि
ओं ओं, धुंगि थुगिनि धोंगि धोंगिम् कलरवे, जिन मत मनंतं महिम तनुता, जमति सुर नर महोत्सवे. ३ खुदांकि खुंदां, खुखुडदिखंदां दोंदों अंबरे, चाचपट चचपट रणकिणे णणे, डण ण डे डे डंबरे; तिहां सरगमपधुनि निधपमगरस, सस ससस सुर नर सेवता, जिन नाटय रंगे, कुशलमुनिशं, दिसतुं शासन देवता. ४
(137) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति जय जयकर साहिब, शासनपति महावीर, मानव मनरंजन, भंजन मोह