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प्रस्तावना
अक्षरोथी उकेलाय नहिं, शब्दोथी समजाय नहिं
बुद्धिथी पमाय नहिं एबुं गूढतम तत्त्व जो कोई होय तो ते भक्ति तत्त्व छ। बहु कठीन छे भक्ति मार्ग- एने उकेलवा समजवाके तेनी सफर करवी सहेली नथी। लोकोनी लोकमान्यता के आम जनता भले आ भक्तिमार्गने सरल मार्ग मानती होय। अने तेने माटे ज्ञान मार्ग झंझेट भर्यो लागे छे, ध्यान मार्गने एकलवायो गणे के तपमार्गने शुष्क पानखरीयो पंथ कहे पण चिंतकोनी दृष्टिए भक्तिमार्गने ते सर्वाधिक कठीन मार्ग कहे छे। कारण ज्ञान मार्गमां बुद्धि प्रयोग छे जे बहु सरल छे, ध्यानमार्गमां मननो निरोध छे जे प्रयत्नथी साध्य छे। तप ने करनारा लाखोनी संख्यामां आजना कलियुगमां पण जोवा मले छे। आहारने छोडवू पण सरल छे भक्तिमार्गमां........पण भक्तिमार्गमां तो हृदयनी जरूर पडे छे।
कारण.........भक्तिमार्ग ए आंतरिक संवेदन-भीतरी वेदननो मार्ग छे।
कमल जेवा कोमळ हृदयने भकितमा जोडवू ओतप्रोत करवू ए आ विषम संसारमा कठिनतम कार्य छे "ज्ञान हृदय विहोणुं होई शके, ध्यान हृदय विहोणुं होई शके, तप पण हृदय विहोणुं थई शके पण भक्ति हृदय विहोणी थई ज न शके। अने आईं भक्ति सभर हृदय बधा पासे होय ज तेवू पण नथी। हृदय होय तेमां हार्दिकताभाव जगाववो-लाववो सरल नथी।
वरसाद एकनो एक पण झीलनार पर घणो आधार । स्तुति-स्तवन एकना एक, पण एना गानार पर आधार नानुं सरखं पद-स्तुति के स्तवन ज्यारे सुर तालने झलक साथे सुमधुर कंठे गवाय छे त्यारे तेमांथी प्रगट थती अनेक शक्तिओनुं संचार थतो गानारने अनुभवाय छेसांभळनार पण झुमी उठे छे माटे ज परमात्मानी भक्ति साथे स्तुति