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410 वेताल हराया रे, इन्द्र कहण व्याकरण निपाया, पंडित विस्मय पायारे, वंदो० २. त्रीश वरस घरवास वसाया, संयम शुं दिल लाया रे; बार वर्ष तपी कर्म खपाया, केवलनाणं उपाया रे, वंदो० ३. क्षायिक ऋद्धि अनंती पाया, अतिशय अधिक सोहाया रे, चार रूप करी धर्म बताया, चउविह सुर गुण गाया रे, वंदो० ४. तीन भुवन में आण मनाया, दश दोय छत्र धराया रे, रूप कनक मणिगढ विरचाया, निर्ग्रन्थ नाम धरायां रे, वंदो० ५. रयण सिंहासन बेसण ठाया, दुंदुभि नाद बजाया रे, दानव मानव वासव आया, भक्ते शीष नमायां रे, वंदो० ६. प्रभु गुण गण गंगाजळ नाह्यां, पावन तेहनी काया रे, पंडित क्षमाविजय सुपसाया, सेवक जिनगुण गाया रे, वंदो० ७. (42) श्री महावीर जिन स्तवन (वीर जिणंद जगत उपगारी)
वर्धमानजिनवर ध्याने, वर्धमान सम थावेजी। वर्धमान विद्या सुपसाये, वर्धमान सुख पावेजी। व० १ तुं गति मति स्थिति छे माहरो, जीवन प्राण आधारोजी। जयवंतु जगमां जस शासन, करतुं बहु उपगारोजी। व० २ जे अज्ञानी तुम मत सरीखो, पर मतने करी जाणेजी। कहो कुण अमृतने विष सरीखं, मंदमति विण जाणेजी, व० ३ जे तुम आगम रस सुधा रसे, सींच्यो शीतल थायजी। तास जन्म सुकृतारथ जाणो, सुरनर तस गुण गायजी। व० ४ साहिब तुम पद पंकज सेवा, नितु नित एहिज याचुंजी। श्री ज्ञानविमल सूरीश्वर भाखे, प्रभुने ध्याने माचुंजी। व० ५
(43) श्री महावीर जिन स्तवन आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपा कुंभ जो मुज तुट्यो। कल्पतरू कामघट कामधेनु मिल्यो, आंगणे अमीय रस मेह वुठ्यो । आ० १ वीर तुं कुंडपुर नयर भूषण हुओ। राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो। सिंह लंछन । कनक वर्ण कर सप्त तनु । तुज समो जगतमां को न दूजो। आ० २ सिंह परे एकलो धीर संयम ग्रही, आयु बहोतेर वरस पूरण पाली, पुरी अपापाए निष्पाप शिववहु वर्यो, तिहां थकी पर्व प्रगटी दिवाली। आ० ३ सहस तुज चौद मुनिवर महा संयमी। साहुणी सहसछत्रीस राजे। यक्ष मातंग सिद्धायिका वर सुरी, सकल तुज भविकनी भीति भांजे । आ० ४ तुज वचन