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विचरे महावीर स्वामी, जाशो मा प्रभु पंथ विकट छे, झेर भर्यो एक नाग निकट छे । हाथ जोडीने विनवे वीरने, लोक बधा भय पामी, महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी, (१) आवी गंध ज्यां मानवकेरी, डंख दीधो त्यां थईने वेरी, कंईक समज तुं, कंईक समज एम, कहे करूणा आणी महाभयंकर ए मारगमा विचरे महावीर स्वामी, (२) दूध वयुं ज्यां प्रभुना चरणे, चंडकोशीयो आव्यो शरणे, हिंसा अने अहिंसा वच्चे, लडाई भीषण जामी। महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी, (३) वेरथी वेर शर्म नहि जगमां प्रेमथी प्रेम वधे जीवनमां,। प्रेम धर्मनो परिचय पामी नाग रह्यो शीष नामी महाभयंकर ए मारगमां विचरे महावीर स्वामी० (४)
(40) श्री महावीर जिन स्तवन तार हो तार प्रभु, मुज सेवक भणी, जगतमां एटलो सुजश लीजे; दास अवगुण भर्यो, जाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे ता० १. रागद्वेषे भर्यो, मोह वैरी नड्यो, लोकनी रीतीमां घjय रातो; क्रोधवश धमधम्यो, शुद्धगुण नवि रम्यो, भम्यो भवमांही हुं विषयमातो। ता० २. आदर्यो आचरण, लोक उपचारथी, शास्त्र अभ्यास पण कांई कीधो; शुद्ध श्रद्धान वली, आत्म अवलंबन विना, तेहवो कार्य तिणे को न सीधो। ता० ३. स्वामी दरिसण समो, निमित्त लही निर्मलो, जो उपादान ए शुचि न थाशे; दोष को वस्तुनो, अथवा उद्यम तणो, स्वामी सेवा सही निकट लाशे। ता० ४. स्वामी गुण ओळखी, स्वामीने जे भजे, दरिसण शुद्धता तेह पामे; ज्ञान चारित्र तप वीर्य उल्लासथी, कर्म झीपी वसे मुक्ति धामे ता० ५. जगत वत्सल महावीर जिनवर सुणी, चित्त प्रभु चरणने शरण वास्यो; तारजो बापजी बिरुद निज राखवा, दासनी सेवना रखे जोशो। ता० ६. वीनति मानजो, शक्ति ए आपजो, भाव स्याद्वादता शुद्ध भासे; साधी साधक दशा सिद्धता अनुभवी, 'देवचन्द्र' विमल प्रभुता प्रकाशे। (41) श्री महावीर जिन स्तवन (राग : आजनो दिवस मने)
वंदो वीर जिनेश्वर राया, त्रिशलादेवीना जाया रे, हरि लंछन कंचनवर्ण काया, अमर वधु हुलराया रे, वंदो० १. बालपणे सुरगिरि डोलाया, अहि