________________
272
( 11 ) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (रूप अनूप निहाळी सुमतिजिन,
दसमो देव दयाल मयाल मनोहरू, नयनानंद अमंद जिणंद सुहंकरू सेवीजे सुखदाय सुरासुर शिर तिलो, शीतल शीतलवाणी गंभीर गुणनिलो । १ । शीतल चंदन चंद ज्युं दरिशन तुम तणो, निरखी निरखी जिननाह हैये आनंद घणो । धन धन दिन मुज आज दीठो मुख तुज तणो, सुरतरू सुरमणि जेम मनोरथ पूरणो |२| तुं प्रभु रयण निधान प्रधान गुणे करी, द्यो एक समकित रयण वयण मुज मन धरी । भवभव भावठ दूर सांई करूणा करे, रविमंडल ज्युं तिमिर निकर दूरे हरे । ३ । मुज मन निवसी आप भगति प्रभु तुम तणी, तुज दरिशणकी चाह तेणे मुज मन घणी । द्यो दरिशन सुप्रसन्न मनोरथ पूरवो, गुणघातक जे पाप ते मुज चूरवो । ४ । सुण शीतल जिनभाण सुजाण सुहंकरू, दृढरथराय कुलचंद नंदानंदन वरू । कहे केसर जिननाह कहुं एक तुज भणी । आपणो जाणी जिणंद मया करजो घणी । ५ ।
(1) श्री श्रेयांस जिन स्तवन
श्री श्रेयांस जिन अगियारमां सुणो साहिब जगदाधार मोरा लाल; भवोभव भमता जे कर्या, में पाप स्थानक अढार मोरा लाल ... श्री० (१) जीव हिंसा कीधी घणी, वली बोल्यां मृषावाद मोरा लाल; अदत्त पराया आदर्यां, मैथुन सेव्यां उन्माद मोरा लाल ... श्री० (२) पापे परिग्रह मेलीयो, कर्यो क्रोध अगननी जाल मोरा लाल; मान गजेन्द्रे हुं चढयों, पड्यो माया वंश जाळ मोरा लाल ... श्री० (३) लोभे थोभे न आवीयो, रागे न कीधो त्याग मोरा लाल; द्वेषे दोष वाध्यो घणो, कलह कर्यो प्रसिद्ध मोरा लाल... श्री० (४) कूडा आळ दीधा घणां, पर चाडी पापनुं मूळ मोरा लाल; इष्ट मळे रति उपनी, अनिष्टे अरति प्रतिकुळ मोरा लाल... श्री० (५) पर निंदाओ परिवर्यो, वली बोल्या माया मोस मोरा लाल; मिथ्यात्व शल्ये हुं भारीयो, न आण्यो धर्मनो शोष मोरा लाल... श्री० (६) अ पाप थकी प्रभु उद्धरो, हुं आलोउ तुम साख मोरा लाल; श्री खीमा विजय पद सेवतां, जस ने अनुभव गुण दाख मोरा लाल... श्री० (७)