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(10) श्री शीतलनाथ जिन स्तवन (दीठी हो प्रभु दीठी जगगुरू)
सेवो हो सखी सेवो शीतलनाथ, साथ ज हो सखी साथ ए शिवपुर तणोजी। महमहे हे सखी महमहे जास अनूप। महिमा हे सखी महिमा महिमांहे घणोजी।१। मोटो हे सखी मोटो हे जगदीश, जगमां ए सखी जगमां ए प्रभु जाणीयेजी। अवर न हे सखी अवर न कोई इश, एहनी हे सखी एहनी ओपमा आणीयेजी ।२। प्रभुता हे सखी प्रभुतानो नहि पार | सायर हे सखी सायर परे गुणमणि भर्योजी। मूरति हे सखी मूरति मोहनगार, हरि परे हे सखी हरि परे शिवकमला वॉजी।३। तारक हे सखी तारक सकल जहाज, आपे हे सखी आपे भवजल निस्तॉजी। सुरमणि हे सखी सुरमणि जेम सदैव, संपद हे सखी संपद सवि अलंकर्योजी । ४ । ए सम हे सखी ए सम अवर न देव, सेवा हे सखी सेवा एहनी कीजीयेजी। कीजीये हे सखी कीजीये जन्म कयथ्थ । मानव हे सखी मानवभव फळ लीजीयेजी। ५ । पूरे हे सखी पूरे वंछित आश, चूरे हे सखी चूरे भवभय आपदाजी। सुरतरू हे सखी सुरतरू जेम सदैव, आपे हे सखी आपे शिवसुख संपदाजी।६। धन धन हे सखी धन धन तस अवतार, जेणे हे सखी जेणे तुं प्रभु भेटियाजी। पातक हे सखी पातक तस गयां दूर, भवभय हे सखी भवभय तेणे मेटीयोजी |७। पामी हे सखी पामी तेणे नवनिधि, सिद्धिज हे सखी सिद्धिज सघळी वश करीजी। दूरगति हे सखी दूरगति वारी दूर | केवल हे सखी केवल कमला तिणे वरीजी | ८ | सेवी हे सखी सेवी साहिब एह, हरिहर हे सखी हरिहरने कहो कुण नमेजी। चाखी हे सखी चाखी अमृत स्वाद, बाकस हे सखी बाकसबूकस कुण जमेजी।६। पामी हे सखी पामी सुरतरू सार । बाउल हे सखी बाउल वनमां कुण भमेजी। लेई हे सखी लेई मृगमद वास, पासे हे सखी पासे लसणने कण रमेजी।१०। जाणी हे सखी जाणी अंतर एम, एहशुं हे सखी एहशुं प्रेमज राखीयेजी। लहिये हे सखी लहिये कामित काम, शिवसुख हे सखी शिवसुख सहेजे चाखीयेजी । ११ । नयविजय हे सखी नयविजय कहे धन्य । तेह, अहनिशि हे सखी अहनिशि जे सेवा करेजी, पामे हे सखी पामे नवनिधि सिद्धि, संपद हे सखी संपद सघळी ते वरेजी । १२ ।