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मानवभव फल लीजे. २ अंग अग्यार ने उपांग बार, दशपयन्ना छेद मूल चार, नंदि अनुयोग द्वार, छ लाख ने छत्रीस हजार, चौदपूर्व रचे गणधार, त्रिपदीनो विस्तार; वीर पंचकल्याणक जेह, कल्पसूत्रमें भाख्यो तेह, दीपोच्छव गुणगेह, उपवास छठ अठ्ठम करे जेह, सहस लाख कोडी फल लहे तेह, श्री जिनवाणी अह. ३ वीरनिर्वाण समे सुर जाणी, आवे इन्द्र अने इन्द्राणी, भाव अधिक मन आणी, हाथ ग्रही दीवी निसि जाई, मेरईआ बोले मुख वाणी, दिवाळी कहेवाणी; इणी परे दीपोच्छव करो प्राणी, सकल सुमंगल कारण जाणी, लाभविमल गुणखाणी, वदित रत्नविमल ब्रह्माणी, कमल कमंडल वीणा पाणि, द्यो सरस्वति वर वाणी. ४
(142) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वाणी श्रीवीर जिनेश्वर केरी, सांभळतां सुखकारी जी, ठालीवाव ठणका करती, नीर भरे नर नारीजी. नीचे गागर ते उपर पाणीयारी, नित्य भरे नीर सवारी जी. तले कुंभ ते चाकपर फरतो, वीर वचन उपकारजी. १ किडीओसे ओक कुंजर जायो, बहु बलियो कहेवायोजी; मगर भुगल मुख नवि निकलाये, खीणमाही खालथी जायोजी, कुंजरनुं जोर कांइन चाले, ससलो जो सामे धायजी. उंदर आवे मनी नाशी जावे, प्रणमुं चोवीश जिन पायजी. २ मृगले पासलो मोटो मांडयो, पारधी पडीयो पीलायेजी; ससरो सूतो वहु हिंडोलवा जाये, हालरूवा गायजी, फोंइबाने करी वरसण थाये, नेहथी नीर भींजाय जी; भर भोगथी कमल नीपाये; जग जस वाद वीररायजी. ३ जे हवे अर्थ धरो नरनारी, धर्मने व्रत धारीजी; सिद्धाइ देवी जिन पद सेवी, संधने सानिध्य कारीजी; वड गच्छ नायक विजय जिनेन्द्र सूरि, साधुमां शिरदारजी; थोय सुणी मद मानने टाली, उंडाते अर्थ विचारजी; ४
(143) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वंदु विर जिनेश्वर नमी करी, बहोतेर वरस, आयु पूरण करी; कार्तिक वदि अमावस्या निर्मळी, वीर मोक्षे पहोंच्या पावापुरी. १ चोवीसे जिन मोक्षे गया, मुज शरण होजो निर्मल थयां, अकवार जिनजी जो मिले मारा मननां मनोरथ सवि फळे ॥२।। महावीरे ते दीधी देशना, सोल पहोर सुणी ते भवी