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गणधर विरचे, पामी त्रिपदी सारजी; नागमंत्र सम श्रीजिनवाणी, भाव धरी भवि प्राणी जी, सुणीओ त्रिकरण शुद्ध करीने, वरीओ शीव पटराणीजी. ३ रूमझुम करती गजगती चालती, भरती पुण्य भंडारजी, सिद्धायिकादेवी सुविचारी, संघ सकल सुखकारजी; वीर जिणंद पद सेवाकारी, शासन विघन निवारीजी, पंडित लक्ष्मीविजय गुरू सेवक, ज्ञानविजय जयकारीजी. ४
(140) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति वीर जिनेश्वर अति अलवेसर, मुरति सुरत सारीजी, पूजो प्रणमो भविजन भावे, उतारे भव पारीजी; गुणमणि रोहण जग संबोहन, कंचन सम जे कायाजी, त्रिशला माता जगविख्याता, तात सिद्धारथ रायाजी. १ सयल जिनेश्वर जग परमेश्वर, भुवन दिनेशर देवाजी, पूजो प्रणमो पदकज तेहना, सुरनर सारे सेवाजी; अतीत अनागत ने वर्तमान, विहरमान जिन वीशजी; ते संभारी नित्य समरतां, पहोंचे सयल जगीशजी. २ समवसरण करी बेसी जिनवर, भाखे अर्थ अनेकजी, गणधर रचना सारी जाणी, सुणो ह्रदय विवेकजी; ज्ञान अनोपम दीवा सरखं, जाणो जाण सुजाणजी, पाप निकासे पुण्य प्रकाशे, जिम उदयाचल भाणजी. ३ शासन देवी नित्य समरेवी, संघने सानिध्य करजोजी, दोलत दाता भगवती माता, सेवकने चित धरजोजी, रूप अनोपम वान अनोपम, अनोपम ओ जगसारीजी, पंडित धीरसागर पद सेवक, अमरसागर जयकारीजी. ४
(141) श्री महावीरस्वामीनी स्तुति शासननायक श्री महावीर, सात हाथ हेम वरण शरीर, हरि लंछन जस धीर, जेहनो गौतमस्वामी वजीर, मदन सुभटगंजन वडवीर; सायर पेरे गंभीर; कार्तिक अमावस्या निर्वाण, द्रव्य उद्योत करे नृप जाण, दीपक श्रेणी मंडाण, दिवाळी प्रगटी अभिधान, प्रभात समे श्रीगौतमज्ञान, वर्धमान धरो ध्यान. १ चोवीशे जिनवर सुखकार, परव दिवाळी अति मनोहार, सकल पर्व शणगार, मेरइया करे अधिकार, महावीर सर्वज्ञाय पद सार, जपीये दोय हजार, मज्झिम रयणी देव वांदीजे, 'महावीरपारंगताय' नमीजे, सहस ते दोय गुणीजे, वळी 'गौतम सर्वज्ञाय' नमीजे, पर्व दिपोच्छव इणि परे कीजे,