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पुनमने दीवसे, गुण रयणायर भरीया। पांच क्रोडशुं पुंडरिक गणधर, भवसागरने तरीया।। भवि०॥२॥ पोतरा प्रथम प्रभुजीकेरां, द्राविड वारिखिल्ल जाणो। कार्तिक सुदि पुनमने दीवसे, दश क्रोडी गुणखाणो।। भवि०॥३॥ कुंतामाता सती शिरोमणी, यदुवंशी सुखकारी। पांडव वीश क्रोडीशुं सिध्यां, अशरीरी अणाहारी ।। भवि०॥४॥ फागण सुदी दशमी दिन सेवो, नमि विनमि बे कोडी। आतमगुण निर्मल निपजाव्यां, नावे एहनी जोडी। भवि०॥५॥ चैत्र वदि चौदश शिवपामी, नमि पुत्री चौसठ । रत्नत्रयी संपूरणसाधी, पामीए परमट्ठ। भवि०॥६॥ फागण सुद तेरस शिव पाम्यां, शांब प्रद्युम्नगुणखाणी। साडी आठ कोटी मुनिवरशुं, परण्या शिवपटराणी।। भवि०॥७॥ राम भरत त्रण कोडि मुनिशुं, अचल थया अरिहंत, छेल्ला नारद लाख एकाj, समरो मन धरी खंत । भवि० ।।८।। एक सहसशु थावच्चा सुत, पंचसया शेलगजी। एक हजारशुं, शुक्र परिव्राजक, पाम्या पद अविचलजी॥ भवि०॥६॥ अतीत चोवीशनां बीजा प्रभु, तेहना गणधर वंदो। कदंबनामे एक क्रोडशुं, सिद्ध थया सुखकंदो।। भवि०॥१०॥ एक हजारने आठ संघाते, बाहुबली मुनि मोटा। त्रण क्रोडी जयराम मुनिश्वर, सिद्ध थया नही खोटा ।। भवि०॥११॥ अंधकं विष्णु पिता माता धारणी, तेह तणा दशपुत्र। गौतम समुद्र प्रमुख, शिव पाम्यां, राख्युं घरचं सूत्र । भवि०॥१२॥ वळी तेहना आठ पुत्र वखाणो, अक्षोभ आदिकुमार | सोळ वरस संयम आराधी, पाम्यां भवनो पार । भवि०॥१३॥ अनाद्रुष्टिने दारुक मुनि दोय, आतम शक्ति समारी। ऋषभ सेनादिक पण, इहां वरीयां शिवनारी॥ भवि०॥१४॥ भरतवंशी राजादि धणेरां, अंतिम धरमने साध्यो। शुकराजा षटमांसी ध्याने, मुक्ति निलय गुण वाध्यो। भवि० ॥१५॥ जालीमयालीने उवयाली, देवकी षट्सुतवारु। सिद्ध थयां मंडुक मुनि वळि, नमतां मन होय चारुं। भवि०॥१६॥ अतीत काळे सिद्धा अनंता, वळीय सिद्धसे अनंता । संप्रतिकाळे, मोटुं तीरथ, इम भाखे भगवंता । भवि० ॥१७॥ धन्य ए तीरथ मोटो महिमा, पामी पातिक जाये। क्षमाविजय जश तीरथ ध्याने, शुभमने सिद्ध थाये भवि तुमे वंदोरे, श्री सिद्धाचल सुखकारी॥१८॥