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________________ 213 रे; जन्म सुकयथ्थ, गणुं तुम सेवना रे. ॥३॥ दरिसण तुम केरा रे, करुं उठी सवेरा रे, मीटे मोह अंधेरा रे; खीजमतमां रहुं, साहिब ! तेरी आगळे रे० ॥४॥ सेव्य सेवक भाव रे, थयो पुण्य जमाव रे, होजो जावज्जीव रे; वीतराग स्वभाव न, प्रगटे जिहां लगे रे०. ॥५॥ प्रभुआणा राग रे, समकितनो लाग रे, अहीज भव ताग रे, शिवपद माग रे, आपो प्रभु तमे जिनविजयनेरे. ॥६॥ (6) श्री ऋषभदेव भगवाननुं स्तवन जीरे सफळ दिवस आज माहरो, दीठो प्रभुनो देदार (२) लय लागी जिनजी थकी, प्रगट्यो प्रेम अपार (२) घडीओ न विसरो हो साहेबा, साहेबा घणो रे सनेह (२) अंतरजामी छो माहरा, मरुदेवाना नंद सुनंदाना कंत घडीओ० ॥१॥ साहिबा लघु थई मन माहरूं, तिहां रद्यु, तुमारी सेवाने काज, ते दिन क्यारे आवशे, होशे सुखनो आवास (२) घडि० ॥२॥ घडीओ० जीरे प्राणेश्वर प्रभुजी तमे, आतमना रे आधार, म्हारे प्रभुजी तुमे ओक छो, जाण जो निरधार. घडीओ० ॥३॥ साहिबा ओक घडी प्रभुजी तुम विना, जाओ वरस समान, प्रेम विरह हवे केम खमुं? जाणो वचन प्रमाण घडीओ० ॥४॥ साहिबा अंतरगतनी वातडी, कहो केने कहेवाय,? व्हालेश्वर वीसवासीया, कहेता दुःख जाय, सुणतां सुख थाय घडीओ० ॥५॥ साहिबा देव अनेक जगमा वसे, तेहनी ऋद्धि अनेक, तुम विना अवरने नवि नमुं, अहवी मुज मन टेक. घडीओ० ॥६॥ जीरे पंडित विवेकविजयतणो, प्रणमे शुभ पाय, हरखविजय श्री ऋषभना, जुगते गुण गाय. घडीओ. न विसरो हो साहिबा ॥७॥ (7) श्री आदिनाथ जिन स्तवन (राग-तार हो तार प्रभु-ओ देशी) ऋषभ जिनराज मुज आज दिन अति भलो, गुण नीलो जेणे तुज नयन दीठो, दुःख टल्यां सुख मळ्या स्वामी तुज निरखता, सुकृत संचय हुओ पाप नीठो. ऋषभ० १ कल्पशाखी फल्यो, कामघट मुज मल्यो, आंगणे अमीयनो मेह वूठो, मुज महीराण महीभाण तुज दर्शने, क्षय गयो कुमति अंधार जूठो. ऋषभ० २ कवण नर कनक मणि छोडी तृण संग्रहे,? कवण कुंजर तजी करह लेवे? कवण बेसे तजी कल्पतरु बाउले? तुज तजी अवर
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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