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कां करोजी....४ पुण्ये हाट वखारो शेठनी, उगरी सौ प्रशंसा करेजी, हरखे शेठजी तप उजमणुं, प्रेमदा साथे आदरेजी....५ पुत्रने घरनो भार भलावी, संवेगी शिर सेहरोजी, चउनाणी विजयशेखर सूरि, पासें तपव्रत आदरेजी.... ६ एक खट मासी चार चौमासी, दोसय छठ सो अट्ठम करेजी, बीजा तप पण बहुश्रुत सुव्रत, मौन एकादशी व्रत धरेजी....७ एक अधम सुर मिथ्यादृष्टि, देवता सुव्रत साधुनेजी, पूर्वोपार्जित कर्म उदेरी, अंगे वधारे व्याधिनेजी....८ कर्मे नडीओ पापे जडीओ, सुर कहे जाओ औषध भणीजी, साधु न जाये रोष भराये, पाटु प्रहारे हण्यो मुनिजी....६ मुनि मन वचन काय त्रियोगे, ध्यान अनल दहे कर्मनेजी, केवल पामी जिनपद रामी, सुव्रत नेम कहे श्यामनेजी....१०
(राग : सिद्धारथ राय कुलतिलोए) (ढाळ ४) कान पयंपे नेमने ए, धन्य धन्य यादववंश, जिहां प्रभु अवतर्या ए, मुज मन मानस हंस, जयो जिन नेमने ए....१ धन्य शिवादेवी मावडीए, समुद्र विजय धन्य तात सुजात जगतगुरुए, रत्नत्रयी अवदात जयो०....२ चरण विरोधी उपनाए, हुं नवमो वासुदेव, जयो०। तिणे मन नवि उल्लसेए, चरण धरमनी सेव, जयो० ३ हाथी जेम कादव गल्योए जाणुं उपादेय हेय जयो०। तोपण हुं न करी शकुं ए, दुष्ट कर्मनो भेद जयो० ४ पण शरणुं बलियातणुं ए, कीजे सीजे काज, जयो०। एहवां वचनने सांभळीए, बांह्य ग्रह्यानी लाज, जयो०....५ नेम कहे एकादशीए, समकित युत्त आराध, जयो०। थाईश जिनवर बारमोए, भावि चोवीशीएं लद्ध जयो०....६
(कलश) एम नेमि जिनवर, नित्य पुरंदर, रैवताचल मंडणो, बाण नव मुनि चंद वरसें, राजनगरे संथुण्यो, ७ संवेग रंग तरंग जलनिधि, सत्यविजय गुरु अनुसरी, “कपुर विजय कवि क्षमाविजय गणि, जिन विजय" जय सिरि वरी....८
(16) श्री रोहीणी तपनुं स्तवन ढाल-४ (ढा. १) मघवा नगरी करी झंपा, अरि वर्ग थकी नहि कंपा, आ भरते