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________________ 169 रोवंती; रिद्धि सिद्धि लीला सुख पाई, हैडे हेज हसंती...आपो० ॥६॥ शिवसुंदरी वरवा वरमाळा, कंठे ठवे वश होती; ज्ञानविमल सूरि प्रभुनी सेवा, कामगवि दोहंती...आपो आपोने लाल, मोंघा मूला मोती...|७|| (21) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग-आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे) गिरिवरियानी टोचे रे, जग गुरु जई वस्या, ललचावो लाखोने लेखेन कोई रे; आवी तळाटी ने तळीये टळवलुं ओकलो, सेवक पर जरा महेर करीने देखो रे. गिरि० (१) हाम धामने दाम नथी हुं मागतो, मांगु मांगण थईने चरण हजुरजो, काया निर्मळ छे ते प्रभुजी जाणजो, आप पधारो दिलडे दीलडां पूरजो. गिरि० (२) जन्म लीधो ते दुःखीयाना दुःख टाळवा, ते टाळीने सुखीया कीधा नाथजो, तुम बालकनी पेरेरे हुं पण बालुडो, नमी विनमी ज्युं धरजो मारो हाथजो. गिरि० (३) जेम तेम करी पण आ अवसर आवी मव्यो; स्वामी सेवक सामा सामी थाय जो; वखत जवानो भय छे मुजने आकरो, दर्शन द्यो तो लाखेणो कहेवायजो. गिरि० (४) पंचमे आरे प्रभुजी मळवां दोहिलां, तोपण मळीया भाग्य तणो नहीं पारजो, उवेखो नहीं थोडा माटे साहिबा, ओक अरजने मानी लेजो हजार जो. गिरि० (५) सुरतरुं नाम धरावे पण ते हुं शुं करुं, साचो सुरतरु तु छे दिन दयाळ जो; मन गमतुं दई दानने भव भय वारजो, साचा थाशो षट्काय प्रति पाळजो, गिरि० (६) करगरुं तो पण करुणा जो नहीं लावशो, लंछन लागे संघपति नाम घरावी रे; पाये वळग्या ते सविने सरखा कर्या, धीरज आपो अमने भक्त ठरावी रे. गिरि० (७) नाभी नरेश्वर नंदन आशा पूरजो. रहेजो हृदयमां सदा करीने वासजो; कांतिविजयनो अंतिम पण अभिराम छे, सदा सोहागण मुक्ति थाय विलासजो. गिरिवरियानी टोचे रे, जग गुरु जई वस्या...(८) (22) श्री सिद्धाचल स्तवन श्री रे सिद्धाचल भेटवा, मुज मन अधिक उमाद्यो; ऋषभदेव पूजा करी, लीजे भवतणो लाहो. श्री० १ मणिमय मूरति श्री ऋषभनी, नीपाई अभिराम; भवन कराव्यां कनकनां, राख्या भरते नाम, श्री० २ नेमि विना त्रेविस प्रभु, आव्या सिद्धक्षेत्र जाणी; शेजा समु तीरथ नहीं, बोल्या सीमंधर वाणी. श्री०
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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