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परवश थई, बहु विषय-सुख में भोगव्यां, चारित्रनां जे भंग विभु, मुक्तिनां वैरी थया, कुबुद्धिथी अनिष्ट किंचित, आचरण में आचर्यु, करजो क्षमा सहु पाप, आ मुज रंक- जेजे थयुं ॥१४॥ आदिनेम वीर वासुपूज्यजी, चार तीर्थंकर छोडीजी, समेतशिखर पर वीश जिनेश्वर, कर्मना बंधन तोडीजी, समेतशिखर फरसन आवे, मानव होडा होडीजी, फरी फरी वंदन करवा काजे, मनईं जावे दोडीजी ॥१५॥ इंद्रभूति गौतम निहाली, आँखडी पावन थई, जन्म सफलो माहरो ने, दुरगति दूरे गई, गौतम गणिनां गुण गणवां, कोण सूरा जगजने, कैवल्य दाननी लब्धि गुरु, गौतम तणी मलजो मने ॥१६॥ भटक भटकमें तेरे मंदिर, आज कही से आया हुं। दरिशण तेरा पाकर जिनवर जीवन सफलतां पाया हुं। अब यह दुनिया जुठी लही हैं, छोड सबको आया हुं। भक्ति दीपसे, मुक्ति किरण की ज्योत जगाने आया हुँ ॥१७॥ स्वर्गोतणां सुख ओ प्रभु, लीधां अनंतीवारमे । चक्री वासुदेवना सुखो, भोगव्यां अनंतीवारमे । ए सुखतणां बदले सही, साते नरकनी वेदना। पोकार करुं हुं हुं रडी, एहथी मुजने बचावजो ।।१८।। निगोदमाथी निकल्यो, एमां हती ताहरी दया। नरकमांथी निकल्यो, एमाहती ताहरी दया। तिर्यंचमांथी तारनारा, स्नेह सिंधू तमे हता। मानवमांथी मुक्त करवां, पापी पावन थइ जवा ॥१६॥ शासनपति महावीर तुज शासनतणी, बलिहारी छ। कलिकालमां पण संघ ताहरो, शास्त्र आज्ञाधारी छे। करी स्थापना शासनतणी, श्री वीर महा उपकारी छे। हो विर विभूना चरणमां, मुज वंदना मुज वंदना ॥२०॥ क्यारे अमारुं भाग्य एहवू, जागशे अमे आवीशुं। महाविदेह क्षेत्रे आवीने, नजरे तने निहालशुं। अद्भूत ताहरु रूपने, अद्भूत तुज रूप छे। करुं, वंदन नित्य उठी प्रात, श्री सीमंधरस्वामीने ॥२१॥