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नचावतो ।२। बहु विध फुल अमूल सुगंधी विस्तरे, बार पर्षदा नयन के सरसीया करे, सुजसानंदन वयण सुधारस वरसतो, भविक हृदय भू पीठ रोमांच अंकूरतो।३। गणधर गिरिवर श्रृंगथी पसरी सुर सरी । नय गम भंग प्रमाण तरंगे परवरी। क्रोध दावानल शांतिथी शीतल गुण वहे, अशुभ कर्म धन धाम समाधि सुख लहे । ४। विकसित संयम श्रेणि विचित्र वनांवलि, आश्रव. पंच जवासके मूळ संतति बळी। प्रसर्यो सुथ सुकाल दुकाल गयो टळी, क्षमाविजय जिन संपद वर्षा रूतु फळी । ५ ।
(8) अनंत जिन स्तवन अनंत जिनेश्वर आपजो रे, अक्षय अनंतीवार, भव अटवीमां मुज मिल्यो रे, अवि हड शिवपुर साथ, गुणनो धारक मारो सुखनो कारक, मारो दुःखनो वारक, प्रभुजी मारा भवोदधि पार उतार, ॥१॥ ज्ञान अनंतु ताहरे रे, दोय अनंत प्रकाश, (२) देखत दर्शन गुण थकी रे, वस्तु सामान्य अषेश, (२)।।२।। आप स्वरूप मांही रमो रे, अव्याबाध महंत, (२) क्षायिक वीर्यनो धणी रे, महीमावंत महंत, (२)॥३॥ लंछन सिंचाणो भलो रे, देह धनुष्य पचास (२) लाख वरसनुं आउखुं रे, पीत्त वर्णतनुं खास, (२)॥४॥ धन्य सिंहसेन तातनेरे धन्य धन्य सुजसा मात, (२) नयरी
अयोध्या विचरता रे, पवित्र करे कूल जात (२)॥४॥ समेत शिखर गिरि उपरेरे, सात हजार मुणिंद (२) क्षमा विजय जिन पामीयारे, उत्तम सहजानंद (२) अनंत जिनेश्वर आपजो,... ॥५।।
(1) धर्मनाथ जिन स्तवन (राग : आज अमे मंदिर म्याता)
धर्म जिनेश्वर पूजवा सैयर मोरी, पूजो अधिक ऊमंग हो, केशर चंदन मृगमदे सैयर मोरी, पूजो अधिक आनंदहो, सहेजे सलूणो मारो, शिवसुख लीनो मारो, कामथी बीनोमारो, वैराग्यमां भीनो मारो साहिबो० ॥ सैयरमोरी जय जयधर्म जिणंद हो।।१।। विजय विमानथी उतर्यां सैय० रत्नपुरे अवतार हो, माता सुव्रतानी कुंखे अवतर्या जन्म्यां जगत आधार हो ॥२॥ पुष्य नक्षत्रे जनमीया सैय० देवगणे अभिरामहो, कर्कराशी प्रभुजीतणी, सैय० वज्र लक्षण गुण धामहो ॥शा भानुराम कुल उपन्यां सैय० धनुष्य