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(47) श्री गौतम स्वामीना विलाप स्तवन वर्धमान वचने तदा, श्री गौतम गणधार. देवशर्मा प्रति बोधवा, गया हता निरधार. १ प्रतिबोधी ते विप्रने, पाछा वलीया जाम, तव ते श्रवणे साभव्युं, वीर लह्या निर्वाण. २ ध्रसक पड्यो तव ध्रासको, उपन्यो खेद अपार, वीर वीर कही वलवले, समरे गुण संभार. ३ पूछीश कोने प्रश्न हुं, भंते कही भगवंत, उत्तर कोण मुज आपशे, गोयम कही गुणवंत. ४ अहो प्रभु आ शुं कर्यु, दीनानाथ दयाल, ओ अवसरे मुजने तमे, काढयो दुर कृपाळ. ५
(48) श्री महावीर जिन स्तवन मोक्षे गया महावीर प्रभु रे, चोवीशमो जिन चंदरे, अंतर जामी उडी गया, छोडी दुनियाना फंद रे, प्रभु०॥१।। सिद्धारथ कुल चंद्रमां रे, सिद्धारथ भगवंत, विरह पड्यो भरत क्षेत्रमा रे, आज पछी अरिहंत रे, प्रभु०॥२॥ संघ सकल शोक थयो त्यां, भाव दिपक थयो खलास, दुर्गति अंधकार रे, बहु प्रसरशे, हवे कोण करशे प्रकाश रे, प्रभु०॥३॥ देवशर्माने प्रतिबोधवारे, गौतमने मूक्या आज, शिवपुर आज पधारीया रे, मन मोहन महाराज रे, प्रभु०॥४॥ वळतां गौतम श्रवणे सुणी रे, मन थयुं अरिहंत साथ; इण समय अलगो केम मूक्यो, मने श्री जगनाथ रे प्रभु०॥५।। मनना संषय कोण भांजशे रे, अहर्निश मारा आधार, गौतम कही कोण बोलावशे, क्षण क्षणमां केई वाररे, प्रभु०॥६॥ कहोने भगवंत हवे शुं कहु, पूज्य वळी परमेश्वर आप, छोडी मने एकला चाल्या, बहु दूर दूर देशरे प्रभु०।।७।। कुमति खजुआ बहु जागशे, आप विना अरिहंत, रवि विण जिम चमके तारा, तेहनो कोण करशे अंतरे, प्रभु०॥ना एह हुं वीतरागनो रागीयो, भूली गयो निज भान, इम निर्मोही भावे भावना रे, गौतमने केवल ज्ञान रे, प्रभु०॥६॥ दिन दिवाळीए गाईए बालापुर नयनानंद रे, प्रवचन नयनिधि चंद्रमा रे, विर विजय जिनचंदरे, प्रभु०।१०।।।
(49) श्री महावीर जिन स्तवन महावीर तेरे चरणोंकी यदी धुलही मिल जाये, ये मन बडा चंचल है, कैसे तेरा भजन करूं, कितना इसे समजाओ, उतनाहि मचलता है,।।१।।