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सोभागी, देखतही रढ लागी रे; ...आज अपूर्व दशा मोहे जागी, ज्ञान टकोरी वागी रे० जि०.॥४॥ जितशत्रु...नंदन चंदन वाणी, धन्य धन्य विजया देवीराणी रे; जि० गजलंछन कंचनवर्ण काया, खिमाविजय जिन राया रे...जि०.॥५॥
(3) श्री अजितनाथ जिन स्तवन (राग : मणीयारो ते)
शुभ वेला शुभ अवसरे रे, लाग्यो प्रभुशुं नेह; वाधे मुज मन वालहा रे, दिन दिन बमणो नेह; अजित जिन ! विनतडी अवधार. मन माहरूं लागी रह्यु रे, तुज चरणे अकतार०...अजित०॥१॥ हियर्थं मुज हेजालु रे, करे उमाहो अपार; घडी घडीने अंतरे रे, चाहे तुज देदार०...अजित ॥२।। मीठो अमृतनी पेरे रे, साहिब! ताहरो संग; नयणे नयण मिलावतां रे शीतल थाये अंग०...अजित०.॥३॥ अवश्य पणे ओक घडी रे, जाये तुज विण जेह; वरसा सो सम साहिबा रे, मुज मन लागे तेह...अजित०.।।४।। तुजने तो मुज उपरे रे, महेर न आवे काय; तो पण मुज मन लालचुं रे, खिण अलगु नवि थाय...अजित०.॥५॥ आसंगायत आपणो रे, जाणीने जिनराय रे ! दरिशन दिजे दिन प्रति रे, हंसरतन सुख थाय...अजित०.॥६।।
(4) श्री अजितनाथ जिन स्तवन दीठो नंदन विजयानो, नहि लेखो हरख थयानो; प्रभु कीधो मन्नमयानो, बोलपालो बाह्य ग्रह्या नो॥१॥ मुजने प्रभुपद सेवानो, लाग्यो छे अविहड तानो; मुज व्हालो ते हियडानो, जे रसीयो नाथ कथानो, दीठो० ॥२॥ न गमे संग बीजानो, जो केलवे कोडी कवानो; जेणे चाख्यो स्वाद सीतानो; तेने भावे धतुरो शानो. दीठो० ॥३॥ प्रभु साथे लाड कर्यानो, माहरे आ संग सदानो; प्रभुनो गुण चित्त हर्यानो, कही मुज नहि विसर्यानी, दीठो०॥४॥ नहि छे माहरे विनव्यानो, प्रभुजीथी शुं छे छानो; शिष्य वाचक विमल विजयनो, कहे राम सुबोध विजयनो,...दीठो० ॥५॥
(5) श्री अजितनाथ जिन स्तवन अजित जिनेश्वर साहिबारे लाल, विनतडी अवधार मारा वालाजीरे, तुं