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एम भणीजे, दश क्षेत्रे दोढसो जाणीजे; अतीत अनागतने वर्तमान, पचास पचास एम प्रमाण, ॥३॥ नेवु जिनना नाम गणीजे, एक त्रणने एकज लीजे; अढारमा ओगणीसने एकवीस, वर्तमान जिन ए निशदिन, ॥४॥ सातमा चोथा छठ्ठा एह, अतीत अनागत जिन जेह; मोटुं पर्व कह्यु तिण हेते, जिन शासनने वळी शिव संकेते, ॥५॥ मागशर सुदि अग्यारस पाळे, ते सवि कर्मना मेल खपावे; जावज्जीव कीजे शुभ भावे, भवभवना तिम संकट जावे, ॥६॥ श्री ज्ञानविमलसूरी एणी परे भाखे, एह चरित्र तणी छे साखे; आराधे जे जिन कल्याणक, तस घर होवे कोडी कल्याण ।।७।।
तपनी आराधना केवी रीते करशो? मौन एकादशी तपनी आराधनाना चार प्रकार छ ।
(१) अगियार वर्ष सुधी दरेक मासनी सुद अगियारसे उपवास करवो। (२) यावज्जीव लगी मौन एकादशीए उपवास करवो। (३) अगियार वर्ष सुधी मौन एकादशीए उपवास करवो। (४) अगियार महिना सुधी सुद अगियारसे उपवास करवो। उपरनी दरेक प्रकारनी तपनी आराधनामां नीचे प्रमाणे जाप वगेरे करवू जोईए : (अ) "श्री मल्लिनाथ सर्वज्ञाय नमः” ए पदनी २० नवकारवाळी गणवी। (ब) अगियार साथिया करवा । ते उपर नैवेद्य तथा अगियार फळ मुकवा। (क) अगियार लोगस्सनो काउस्सग्ग करवो। प्रथम इरि० करी एकादशी तप आराधनार्थं काउस्सग्ग करुं? इच्छं! एकादशी तप आराधनार्थ करेमि काउस्सग्गं वंदणवत्तिआए० अन्नत्थ कही दर मौन एकादशीए १५० कल्याणकनी एक एक एम १५० नवकारवाळी गणवी। (13) अकादशीनुं स्तवन (राग : पालिताणा मन भाव्युं प्रभुजी)
मौनपणु मन भाव्युं प्रभुजी, अकादशी व्रत आव्युं, आज तो दोढसो कल्याणक, उत्तम जिनेश्वर केराहो प्रभुजी० ॥१॥ श्री अरजिन- दीक्षा कल्याणक, मल्लि जन्म दिक्षा केवल पाया, नमी ते केवळ पाया प्रभुजी, हो प्र० ॥२॥ सप्तमचक्रि थया अरस्वामी, इण तिथि दिक्षा ग्रही मद वामी, तीर्थंकर पद सोहाय होप्रभुजी, हो प्र० ॥३॥ ओगणीसमां श्री मल्लिजिणेसर,