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निर्मल पद निर्वाणजो, महा मुनीधर ईश्वर पद पूरण वर्या, शिवपुर श्रेणी आरोहण सोपान जो प्री० ३ त्रण भुवनमां तारक तुज सम को नहिं, एम प्रकाशे सीमंधर महाराजजो, ताहरे शरणे आव्यो हुँ उतावळो, तारतार ओ गिरिवर गरीब निवाजजो, प्री० ४ हुँ अपराधी पापी मिथ्याडंबरी, फोगट भूल्यो भवमां तुम विण नाथजो, हवेन मुकुं मोहन मुद्रा ताहरी, ए मुज मोटां वंकनालनी टेकजो प्री० ५ पल्लो पकडी बेठो बापजी लांघवा, आप आप तुं भक्त वत्सल भगवंतजो, अंते पण देहबु रे पडशे साहिबा, शी करवी हवे खाली खेंचाताण जो। प्री० ६ मल विक्षेपने आवरण त्रीक दूरे करी, छेल छबीलो आव्यो आप हजुर जो, आत्म समर्पण कीधु अति उमंगथी, प्रेम पयोनिधि प्रगट्यो अभिनव पुरजो प्री० ७ श्री सिद्धाचल गिरिवर मंडन शिखरा, परम कृपालु पालक प्राणाधारजो, विछोडशो नहि क्यारे प्यारा प्रेमथी रसीया करजो धर्मरत्न विस्तारजो प्रीतलडी बंधाणी रे विमल गिरिंदशुं० ८ (64) श्री सिद्धाचल स्तवन (राग : आंखडी मारी प्रभु हरखाय छे) __ विनतडी मन मोहन माहरी सांभलो, हुं धुं पामर प्राणी निपट अबूजजो, लांबू ट्रंकुं हुं कांइ जाणुं नही, त्रिभुवन नायक ताहरा घरगुंजजो वि० ॥१॥ पहेला छेला गुण ठाणानो आंतरो, तुजमुज मांहे आ बेहुब देखायजो, अंतर मेरु सरसव बिंदु सिंधुनो, शी रीते हवे उभय संध संधायजो वि० ॥२॥ दोष अढारे पाप अढारे तें तज्यां, भावदशा पण दूरे कीधी अढारजो, सघलां दूर्गुण प्रभुजी में अंगीकर्या, शी रीते हवे थाउं एकाकारजो वि० ॥३॥ त्रास विना पण आणा मने ताहरी, जड चेतन जेने लोकालोक मंडाणजो, हुं अपराधी तुज आणा मानुं नही, कहो स्वामी कीमपामुं निर्वाणजो वि० ॥४॥ अंतरमुखनी वातो विधासी कलं, पण भीतरमां कोरो आपो आपजो, भाव विनानी भक्ति लुखी नाथजी, आषीश आपो कापो भवनां पापजो वि० ॥५॥ यादृश आणा सूक्ष्मतर प्रभु ताहरी, तादृश रूपे मुजथी कदीना पलायजो, वात विचारी मनमां चिंता मोटकी, कोइ बतावो स्वामी सरल उपायजो, वि०॥६।। अतिषयधारी उपकारी प्रभु तुं मल्यो, मुजमन मांही पूरो छे विश्वास जो, धर्मरत्न त्रण निर्मल रत्न
आपजो, करजो आतम परमातम प्रकाशजो वि० ॥७|| 13.