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निरोगी सौभागी थाओ, पामो रंग रसालजी, मूरखपणुं दूरे छांडो, मांडो ज्ञान विशालजी. ६. सौभाग्य पंचमी जे नर करशे, ते वरशे मंगलमालजी, गज रथ घोडा सुंदर मंदिर, मणिमय झाकझमालजी. १०. संवत सत्तर अठ्ठावन मांहि, सिद्धपुर रही चोमासुजी, कार्तिक शुदि दिन पंचमी गायो, सकल फली मुज आशजी. ११. तपगच्छ नायक दिनकर सरिखा, श्री विजय प्रभसूरिंदाजी, श्री विजय रत्नसूरीश्वर राजे, प्रणमे परमानंदाजी. १२.
(कलश) एम नेमि जिनवर, सयल सुखकर, उपदिशे भवि हितकरो, तपगच्छ नायक, शिवसुख दायक, लायक मांहि पुरंदरो. श्री लाभ कुशल, विबुद्ध सुखकर, वीरकुशल पंडित वरो; सौभाग्य कुशल, सुगुरु सेवक, केशवकुशल, जय करो.
(7) श्री ज्ञान पंचमीनु स्तवन ढाल-६ (दुहो) प्रणमी प्रेमे पासजी, पद पंकज अभिराम, पंचमी तप महिमां कहुं, सुणतां सीझे काम॥१॥ अलका अधिक विराजति, द्वारामति इति नाम, नेमिजिनेश्वर आवीया, रैवत गिरि शुभठाम॥२॥ केशव वंदन आवीया, बेठी पर्षदा बार, वरदत्त गणधर तव तिहां, प्रश्न करे सुविचार, ॥३॥ दंशण नाण चारित्रनी, कहो तिथि केही होय, किणा विधि ते आराधीए, जंपे श्री जिन सोय॥४॥ चौदश आठम पूर्णीमां, अमावासी ए तिथि चार, चारित्र पोषह आदरी, लहिए भवजल पार॥५॥ पंचमी बीज अग्यारशी, ज्ञान तणी तिथी एह, ज्ञान भक्ति बहु साचवो, जिम होय निर्मळ देह ॥६॥ नवतिथी शेषे किजीए, दर्शन भक्ति विशेष, जिन पूजन क्ल्याणका, दिक साधर्मीक देख, ७॥ तेह माहे वळी निर्मळी, कार्तिक पंचमी जेह, ज्ञान आराधन कही, नेमि जिने धरी नेह, ॥८॥ एह दिवसे आराधता, पाम्युं निर्मळ नाण, वरदत्तने गुणमंजरी, सुणज्यो तास वखाण,॥६॥
(ढाळ १) जंबु द्विपेभरतमां, पद्मपुरी अति सोहेरे, सुषमां जेहनी जोवतां, सुरनरनां मन मोहे रे, श्री जिनवर इम उपदेशे।।१॥ अजितसेन तस राजीयो, तस घरणी यशोमति राणी रे, वरदत्त तेहनो सुत भलो, सकल