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________________ 244 किम ग्रहीवाये अकळ स्वरूपी ताहरी वात न जाणी जाये, मुज मनडानी शी गति थावे,....(४) पहेला जाणी पछी करे किरिया, ते तो परमारथ सुखना दरिया, वस्तु अजाणे मन दोडावे, तेतो मुरख .बहु पस्ताये,....(५) ते माटे तुं रूपी अरूपी, तुं “शुद्ध' बुद्धने सिध्ध अरूपी, एह ग्रह्यं स्वरूप जब तारूं, तव भ्रमरहित थयुं मन माहीं,....(६) तुज गुण ज्ञान ध्यानमा रहीए, इम हळवू पण सुलभ कहीए मानविजय वाचक प्रभु ध्याने, अनुभवरसमां हुओ एकताने....(७) (6) अभिनंदन जिन स्तवन (राग : कहीं दीप जले) जिनराज रे मारा साहिबा, मारा अभिननंदन जिनराज रे जरा सांभळोने साहिबा, सुरनर सेवित तुम पायरे....(१) सेवक मनडानी वात, कहुं ते सुणो अवदात....सुरनर....(२) मोटा जनशुं जे प्रीत, करवी ते खोटी रीत । मुज मनमां तुं एक, मुज सरीखा तुमने अनेक....(३) निरागी शुं धरे नेह, छटकीने देवे छेह, शी धरवी प्रीत ते साथ, निष्फळ न होय कदैव, मुज उपर भगवान, तुम होजो महेरबान....(५) तपगच्छमां शिरताज श्री विनयप्रभु सुरीराय प्रेम विबुधनो सुपसाय, भाणनमे तुम पायरे....(६) (7) अभिनंदन जिन स्तवन अकल कला अविरूद्ध, ध्यान धरे प्रतिबुद्ध, आछेलाल अभिनंदन जिन चंदनाजी। रोमांचित थई देह, प्रगट्यो पूरण नेह, आछेलाल, चंद्र ज्युं वन अरविंदनाजी। १। एको क्षण मन रंग, परम पुरुषने संग, आछेलाल, प्राप्ति होवे सो पामीयेजी,। सुगुण सलुणी गोठ, जिम साकर भरी पोठ, आछेलाल, विण दामे व्यवसाईयेजी।२। स्वामी गुणमणि तुज, निवसो मनडे मुज, आछेलाल, पण कहीये खटके नहींजी। जिम रज नयणे विलग्ग, नीर झरे निरवग्ग, आछेलाल, पण प्रतिबिंब रहे संसहीजी।३। में जाच्या केई लक्ष, तारक लोभे प्रत्यक्ष, आछेलाल, पण को साच नाव्यो वगेजी मुज बहु मैत्री देख, प्रभु कां मूको उवेख, आछेलाल, आतुर जन बहु ओळगेजी | ४| जग जोतां जगनाथ, जिम तिम आव्या छो हाथ, आछेलाल, पण हवे रखे कुमया करोजी। बीजा स्वारथी देव, तुं परमारथ हेव, ।
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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