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२ सुंदर मूरति में दीठी ताहरी, केटले दीवसे आज; नयन पावन थया प्रभुजी अमारा, पाप तिमिर गया आज० मन० ३ खासो खिजमत गार ते जाणीने, करूणा धरो मनमांय सेवक उपर हिंत बुद्धि आणीने, वळी धरो ह्रदय उमहाय० मन० ४ निर्मल सेवा मृत तुज आपीने, जेम बुझे भवनारे ताप; हवे दरिसणनो विरहते मत करो, जेम मेटजो मननां संताप० मनं० ५ घणुं घणुं शुं कहीए नाथ तमोने, तुम्रे छो चतुर सुजाण; मुज मन वांछित पूरजो एम, कहे पंडित प्रेमनो भाण० मन० ६
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श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन (आवो आवो जसोदाना कंत)
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पांचमा सुमति जिनेसर स्वामी के सुण जिनराया रे, । तुमथी नवनिधि रिद्धि में पामी के, शिवसुख दाया रे, तुं तो पावन धर्म नगीनो के सुर गुण गाया रे, । अहनिश समता रसमां भीनो के, शिवसुख दाया रे० १ मंगला मावडीए प्रभु जायो के, सुणो जिनराया रे, । छप्पन दिगकुमरी हुलरायो के, शिवसुख दाया रे, । तुं तो मेघ नृपति कुल हीरो के, हरि नती पाया रे तुं तो करूणा सागर स्वामी के, शिवसुख दाया रे०२ त्रणसें उंची काया धनुष के, सुण जिनराया रे, । चालीसलाख पूरवनुं आयु रे, पूरण पाया रे । तारी सेव करे सुर स्वामी के सुर गुण गाया रे । तुं तो शिवसुंदरी सुख कामी के, निर्मल काया रे० ३ तुं तो भक्तवच्छल भय टाळे के, शिवसुख दाया रे। तुं तो त्रण भुवन अजुवाले के जिम दिनराया रे तुं तो मुनिजनमां निशि दीवों के, सुर गुण गाया रे । अविचल धूमंडल चिरंजीवो के जिम गिरिराया रे० ४ प्रभुजीनी वाणी अमीरस मीठी के, शिवसुख दाया रे । जिनजीनी मोहन मूरति दीठे के, अति सुख थायरे, श्री गुरु सुमतिविजय कविराया के । सुणो जिनराया रे सेवक रामविजय गुण गाया के, जयो जिनराया के० ५
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( 8 ) श्री सुमतिनाथ जिन स्तवन ( मन मोहन तुं साहिबो)
समकित ताहरूं सोहामणुं, विश्वजंतु आधार लाल रे । कृपा करी प्रकाशिए, मिटे मोह अंधार लाल रे । स० १ नाण दंसण आवरणनी, वेयण मोहनी जाण लाल रे । नाम गोत्र विघ्ननी स्थिति, एक कोडाकोडि मान लाल