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त्रणशेपुरुषनी साथरे ॥ हुं० ॥५॥ घरथकी निकली करीरे लोल, निग्रंथपणुं लीये नाथरे ।। हुं० ॥ पार्श्वनाथ अरिहंत तणुरे लोल, पुरिसादाणी छे नामरे हुँ वारिलाल ॥ त्याशी अहोरात्री लगेरे लोल, छोडी कायानी मायारे ॥ हुं० ॥६॥ देवमनुष तिर्यंचनारेलोल, सहे परिषह धीररे ।। हुं० ॥ तेहमां मेघमाली तणोरे लोल, सुणजो स्थिर करी मनरे ॥ हुं० ॥७॥ एक दिन विचरंता प्रभु रे लोल, तापस आश्रमें जायरे हुं वारीलाल, न्यग्रोध वृक्षनी हेठलेरे लोल, रयां ध्यान लगायरे ॥ हुं० ॥८॥ मेघमाली देवतेणे समेरे लोल, उपसर्ग करवाने आयरे ॥ हुं वारिलाल ॥ कल्पांत काल मेघनी परेरे लोल, जलधारा वरसावेरे ॥ हुं० ॥६॥ दशदिशी विजली चमकतीरे लोल, गर्जारण घणो थायरे ।। हुं० ॥ क्षणमात्रमा प्रभुजी लगेरे, लो० नासिका लगेजल जायरे ।। हुं० ॥१०॥ आसन कंपथी आवीयोरे लोल, धरणेन्द्र तत्कालरे ॥ हुं० ॥ फणारोपे करी ढांकीयोरे लोल प्रभुजी दिनदयालरे । हुं० ॥११॥ अवधिज्ञाने जाणी करीरे लोल, उपसर्ग कर्यां दूररे । हुं० ॥ मेघमाली बीतो थकोरे लोल, थयो प्रभुजी हजूररे, ।। हुं० ॥१२।। ते पण समकित पामीयोरे लोल, प्रभुतणे सुपसायरे, ॥ हुं० ॥ वांदि स्वस्थाने गयारे लोल, शरणुं करी सुखदायरे ॥ हुं० ॥१३॥ धरणेन्द्र पण भक्ति करेरे लोल, गयो पोताने ठामरे ॥ हुं० ।। प्रभु परिषह खमतां थकारे लोल, विचर्यां गामोगामरे ॥ हुं० ॥१४॥ इम परिषह सहन कर्यां रे लोल, त्यासी दिन जिनरायरे ॥ हं० ॥ दीन चौराशीमो आवीयोरे लोल, ग्रीष्म ऋतुवर्तायरे ॥ हुं० ॥ चैत्रवदनी चोथनेरे लोल, चढतो पहोर श्रीकार रे ॥ हुं० ॥१५॥ धातकी वृक्षनी हेटलेरे लोल, अठम तपे चौविहाररे ।। हुं० ॥१६॥ विशाखा नक्षत्रमारे लोल, चंद्रयोग शुभ आयरे ॥ हुं० ॥ शुक्ल ध्यान ध्यातां थकारे लोल, केवलज्ञानी प्रभु थायरे ।। हुं० ॥१७। इंद्र चोसठ तिहां मल्यां रे लोल, समवसरण रचे साररे ।। हुं० ॥ देशना अमृत धारथीरे लोल, तार्यां बहु नरनाररे ॥ हुं० ॥१८॥ हवे प्रभुजीनुं वर्णवू रे लोल, जे जे थयो परिवाररे ॥ हुं० ॥ विजयमुक्तिवर पामीयारे लाल, चरण कमल आधाररे । हूं० ॥१६॥
(ढाल चोथी) प्रभुजी पार्थजिनेसर केरो, वर्णवशुं परिवाररे, गच्छ आठ थाप्यारे जिनजी, आठ थया गणधाररे ॥हमचडी।।१।। आर्यदिन्न प्रमुख