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आलंबन होय, वि० ६ प्रभु तणी विमलता ओलखीजी, जे करे थिर मन सेव; देवचंद्र पद ते लहेजी, विमल आनंद स्वयमेव, वि० ७
(8) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (जगजीवन जिनजी)
विमल जिणेसर मुज परमेसर, अलवेसर उपगारी रे, सुण साहिबा साचा। जगजीवन जिनराज जयंकर। मुजने तुज सुरति प्यारी रे, सुण०।१। महेर करीजे वंछित दीजे । सेवक चित्त धरीजे रे, सुण०, सेवा जाणी शिवसुख पाणी, भक्ति सही नाणी दीजे रे, सुण०।२। कामकुंभने सुरतरुथी पण प्रभु भक्ति मुज प्यारी रे, सुण०। जेओए खिण एक लगी सेवी, शिव सुखनी दातारी रे, सुण०।३। भगति सुवासना वासे वासति । जे होये भवि प्राणी रे, सुण०। जीवन मुक्त चिदानंद रूपी ते कहिये शुद्ध नाणी रे, सुण०।४। प्रभु तुम भक्ति तणी अति मोटी, शक्ति आ जगमा व्यापे रे, सुण०। एक वार पण भावे सेवी, चिदानंद पद आपे रे, सुण०।५। पूरण पूरव पुण्य पसाये, जो तुम भगति में पामी रे, सुण०। तो हुँ दुत्तर आ भव दरीयो, तरीयो सहेजे स्वामी रे, सुण०।६। साहिब सेवक जाणी साचो, नेक सुनजरे जो जो रे, सुण० । नयविजय कहे भवभव जिनजी, तुम भगति मुज होजो रे, सुण०।७।
(9) श्री विमलनाथ जिन स्तवन (पुक्खलवई विजये जयोरे) ___ घर आंगण सुरतरू फल्योजी, कवण कनक फल खाय। गयवर बांघ्यो बारणेजी, खर किम आवे दाय । विमलजिन | माहरे तुमशुं प्रेम १ सुर सवि कलंकीत मिल्याजी, हियडो हिंसे केम, जेहशुं चित्तडु नवि ठरेजी, तेहरों किम थाय प्रेम. वि० २ मनगमता मेवा लहीजी, कुण खोळ खावा जाय,
आदर साहिबनो लहीजी, कुण ते रांक मनाय । वि० ३ पारस छते कुण काचनेजी, अलवे पसारे रे हाथ, कुण सुरतरूथी उठीनेजी, बाउल घाले हाथ । वि० ४ देव अवर प्रभु हुं करूंजी, तो प्रभु तुमची रे आण। श्री जिनराज भवोभवेजी, तुंहीज देव प्रमाण । वि० ५
(1) अनंत जिन स्तवन (राग : ए व्रत जगमां दीवोमेरे) करुणाधर प्रभु विनवू रे, विनतडी अवधार, तुज दरिशण विण हुं