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________________ 489 श्री जिन धर्म चित्त धारो रे; समकित रत्न हैडे धारो, नरक तणां दुःख वारो रे वी० ४ भांजे सर्वे मिथ्या भ्रम, अवो जिन शासन धर्म रे; श्री चिंतामणी चरण पसाये रे, संकट विकट ते जावे वी० ५ मूजपर शहेर प्रभुनी महेर रे, को चोमाशुं उल्लास रे; संवत ओगणीसतोत्तेर वरसे, पोष तणी सुद दशमी रे वी० ६ श्री अगलगच्छे पूज्य पटोधर, श्री पुण्य सिंधु सूरिराय रे; तस घर मंगळमाळ रे; नरक तणां दुःख वीरे भाख्यां, वीर वचन रस चाख्यो रे वी० ८ कहे मुक्ति कमळा तस वरज्यो, सद्हजो वीरनी वाणी रे; मिथ्या प्रासाद तजो सवि भाई, जिन आणा चित्त लाई रे वी० ६ श्री पर्युषण पर्व ढालो (24) पर्व पर्युषण ने आमंत्रण (राग : खारी खारी जगनी सहु प्रीत सतावे) पर्व पर्युषण प्रेमे पधारो, प्रेमे पधारो, स्नेहेस्वीकारे, स्नेहे स्वीकारे हर्षेथी वधावो पर्व० ॥१। पर्व पर्युषण ह्रदयमां धरीए, ह्रदयमां धरीए, दिलमां वसावीए, दिलमां वसावीए, ह्रदयमां धरीए; पर्व० ॥२॥ मनडाना मेलने दूर ज करीए, वाणीना मंत्रोने दिलमां वसावीए, कायानी ममताने दूर ज करीए, पर्व० ॥३॥ तपस्या करीने कर्म खपावीए, कर्म खपावीए मोक्ष सुख वरीए, मोक्ष सुख वरीए, शिवसुख पामीए, पर्व० ॥४॥ वेरने भूलीए, ने मैत्री मेळवीए, भक्ति करीए, भाव भेळवीए, जाप जपीए ने, कर्मो खपावीए, पर्व० ।।५।। महावीर जन्मनुं स्वागत करीए, महावीर जन्मने प्रेमे वधावीए प्रेमे वधावीए, हर्षे स्वीकारीए, हर्षे स्वीकारीए, आनंद पामीए, महावीर प्रभुनी जय जय बोलो त्रिशला गुण गंभीर बोलो वीर प्रभुनी जय जय बोलो (25) छ अट्ठाई स्तवन ढाळ ६ (दोहा) श्री स्याद्वाद शुद्धोदधि, वृद्धि हेतु जिनचंद; परम पंच परमेष्ठिमां, तास चरण सुखकंद. ॥१॥ त्रिगुण गोचर नाम जे; सुबुद्ध
SR No.032195
Book TitlePrachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDinmanishreeji
PublisherDhanesh Pukhrajji Sakaria
Publication Year2001
Total Pages634
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size14 MB
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