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तुंहि सुरतरू तुंहि सद्गुरू, निसुणो सेवक वयण रे। ध० ४ आप विलासो सुख अनंता, रह्या दुःखथी दुर रे। इणि परे किम शोभ लेसो, करो दास हजुर रे । ध० ५ एम विचारी चरण सेवा, दासने द्यो देव रे। ज्ञानविमल जिणंद ध्याने लहे सुख नित्यमेव रे। ध० ६
(10) धर्मनाथ जिन स्तवन (हारे मारे ठाम धरमना) हारे मारे धर्म जिणंदशुं लागी पूरण प्रीतजो, जीवडलो ललचाणो जिनजीनी ओलगे रे लो। हारे मुने थाशे कोईक समे प्रभु सुप्रसन्न जो। वातलडी माहरी रे सवि थाशे वगे रे लो । १। हारे प्रभु दुर्जननो भंभेर्यो मारो नाथ जो। ओलवशे नहि क्यारे कीधी चाकरी रे लो। हारे मारा स्वामी सरखो कुण छे दुनियामांहि जो, जईए रे जिम तेहने घर आशा करी रे लो । २। हारे जस सेवा सेंती स्वारथनी नहि सिद्धि जो। ठाली रे शी करवी तेहथी गोठडी रे लो। हारे कांई जुट्ठ खाय ते मीठाईने माटे जो। कांई रे परमारथ विण नहि प्रीतडी रे लो । ४ । हारे प्रभु लागी मुजने ताहरी माया जोर जो। अलगा रे रह्याथी होय ओसींगलो रे लो। हारे कुण जाणे अंतरगतनी विण महाराज जो। हेजे रे हसी बोलो छांडी आमलो रे लो । ५। हारे तारा मुखने मटके अटक्युं माहरु मन जो। आंखलडी अणीयाली कामणगारडी रे लो। हारे मारा नयणा लंपट जोवे खिणखिण तुज जो। राता रे प्रभु रूपे न रहे वारीया रे लो।६। हारे प्रभु अलगांतो पण जाणजो करीने हजुर जो । ताहरी रे बलिहारी हुं जाउं वारणे रे लो। हारे कवि रूप विबुधनो मोहन करे अरदास जो। गिरूआथी मन आणी उलट अति घणे रे लो।७।
(11) धर्मनाथ जिन स्तवन धर्म जिणंद तुमे लायक स्वामी, मुज सेवक पण नहि खामी, साहिबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला अमारा, जुगती जोडी मली छे सारी, जो जो हैडे आप विचारी।।१॥ भक्त वत्सल तारू बिरूद जाणी, भक्ति तणो गुण अचल अमारो, तेहमां को विवरो करी करशे, तो मुज गुण अवरमां भल।।।२॥ मूळ गुणे तुंनिरागी कहेवाय, ते किम राग भुवनमां आवे, वळी