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भव तराय; विषय कषाय मूल भवतणां, तीर्थ भक्ते छेदाय. ३ स्थावर जंगम भेदथी, दुविध तीर्थ गणाय; जिन गणहरादि मुनिवरा, जंगम तीर्थ कहाय. ४ सिद्धाचल अष्टापद गिरि, आबु समेत सार; रैवतगिरि आदे सवे, स्थावर तीर्थ अवधार. ५ चित्त चोक्खे शुद्ध साध्यशुं, तन्मय स्वरूपाधारं; ओक ज वार ओम सेवतां, पामे भवनो पार.६ सेवना जोग असंख्य छे, पण भक्ति अंग बळवान; ते माटे रुप ओळखी, शामल करे गुण गान. ७
(55) विमलगिरिवर सयल अघहर, भविक जनमन रंजणो, निजरुपधारी पाप टाळी, आदिजिन मद गंजणो; जगजीव तारे भरम फारे, सयल अरिदल गंजणो, पुंडरीक गिरिवर शृंग शोभे, आदिनाथ निरंजणो. १ अज अमर अचल आनंद रुपी, जन्म मरण विहंडणो, सुर असुर गावे भक्ति भावे, विमलगिरि जग मंडणो; पुंडरीक गणाधीप रामपांडव, आदितिहां बहु मुनिवरा; जिहां मुक्ति रमणी वर्या रंगे, कर्म कंटक सहु जरा. २ कोई जगमां अन्य नहि, विमलगिरि सम तारकं, दूर भवियां, जे भवियां सदा दृष्टि निवारकं; ओक त्रीजे पंचमे भव, वरे शिव दुःख वारकं, इह आश धारी शरण थारी आतमा हितकारकं. ३
(56) तरण तारण कुगति वारण, सुगति कारण जमगुरु; भवभ्रमण हरता मनुष्यना, वांछित करवा सुरतरु. १ संसार तापथी तप्त जंतु, जातने छाया करूं; छत्राकृती सिद्धाचले, ऋषभेश कळश मनोहरूं; २ श्री ऋषभदेव प्रमुख द्राविड, वारिखील सहोदरा; आदिनाथ भक्त सुवल्गु तापस, बोधथी तापस वर्या. ३ चारण मुनिवर साथ सर्वे, तीर्थ करवा संचर्या; प्रतिबोधथी मुनिराजना, सर्वे मुनीशपणुं वर्या. ४ पुन्य पुंज सम पुंडरिक गिरि, निरखतां नयणे करी; उल्लास पामी दोष वामी, हर्षथी हृदये धरी. ५ वंदन करीने आविया, गिरिराज उपर पदचरी; रायण ने आदिनाथ चरणे, प्रेमे प्रदक्षिणा फरी. ६ पुंडरीक गणधर साथ आदिनाथने पाये पडी; चारण मुनिना केणथी, लगावी ध्यान तणी जडी. ७ दश कोडी मुनिवर साथ, कार्तिक पुनमे मुक्ति जडी; हंसावतास्ण तीर्थ थाप्यु, हंस देवे तेणी घडी. ८