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संयम लीधो, सूधा संयम शीलाजी; ते नरभवमां पशु, परे जाणो, जे करे तुम अवहीलाजी, तुम पद पंकज सेवाथी होय, बोधी बीज वसीलाजी. १ अष्टापदगिरि रुषभ जिनेश्वर, शिवपद पाम्या सारजी, वासुपूज्य चंपाओ यदुपति, शिव पाम्या गिरनारजी; तिम अपापा पुरीशिव पहोता, वर्द्धमान जिनरायजी, वीश समेतशीखर गिरि सीद्धा, इम जिन चउवीश थायजी. २ जीव अजीव पुण्य पापने आश्रव, बंध संवर निज्जरणाजी, मोक्ष तत्वने नव इणी परे जाणो, वली षट् द्रव्य विवरणाजी; धर्म अधर्म नभ कालने पुद्गल, ओह अजीव विचारोजी, जीव सहित षद्रव्य प्रकाश्यां, ते आगम चित्त धौरोजी. ३ विद्यादेवी सोल कहीजे, शासन सुर सुरी लीजोजी, लोकपालइंद्रादिक सघळा, समकित दृष्टि भणीजेजी; ज्ञानविमल प्रभु शासन भक्ते, देखी जिनने रीझेजी, बोधीबीज शुद्ध वासना द्रढता, तास विरह नवि कीजेजी. ४
(81) श्री मल्लिनाथ जिन स्तुति मल्लि जिनवर शुं प्रीतडी, जे भेद रहित जुगती जडी, अलगो न रहुं एक घडी, जेम भाती पटोलामांही पडी, १ सवि जिनवरना गुणमाल तणी, कंठे आरोपो भविक गुणी, शिव सुंदरी वरवा होंश करो, तोश्री जिन आणा शिर धरो, २ उपदेश अनुपम जलधरु, वच्चे नित्य मल्लिजिनवरु, बोधिबीज सुभिक्ष होय अति घणो, एम महिमाश्री जिनराजतणो, ३ शासन वत्सलजे भाविक जना, जिन धर्म जे छे एक मना, तस सानिध्य करजो सुरवरा, श्री ज्ञानविमल उद्योतकरा, ४ ।
(82) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति श्री नमिनाथ निरंजना देवा, कीजे तेहनी सेवाजी, एह समान अवर नहीं दीसे, जिम मीठा बहुमेवाजी, अहर्निश आतम मांही वसीयो, जिम गजने मन रेवाजी, आदर धरीने प्रभु तुम आणा, शिर धरूं नित्य सेवाजी, 19। चौत्रीश अतिशय पांत्रीश जाणो, वाणीना गुण छाजेजी, आठ प्रातिहारज निरंतर, तेहनी पासे बिराजे जी, जास विहारे दश दिशी कोश, इति उपद्रव भांजेजी, ते अरिहंत सकल गुण भरीया, वांछित देई निवाजेजी, २ मिथ्यामत तत दुष्ट भुजंगसम, तेणे जे जिम हसीयाजी, आगम नोगमता