________________
30
(73)
आश पूरे प्रभु पासजी, त्रोडे भव पास; वामामाता जनमिया, अहि लंछन जास. १ अश्वसेन सुत सुखकरु, नव हाथनी काया; काशी देश वाराणसी, पुण्ये प्रभु आया. २ अकसो वरसनुं आउखुंओ, पाली पार्श्वकुमार; पद्म कहे मुक्ते गया, नमतां सुख निरधार. ३
(74)
जय चिंतामणी पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी; अष्ट कर्म रिपु जितीने, पंचमी गति पामी. १ प्रभु नामे आनंद कंद, सुख संपत्ति लहीओ; प्रभु नामे भव भयतणा, पातक सवि दहीओ. २ ॐ ह्रीं वर्ण जोडी करीओ, जपीओ पार्श्वनामः विष अमृत थई परगमे, लहिओ अविचल ठाम. ३
(75)
ॐ नमः पार्श्वनाथाय, विश्व चिंतामणियते, ह्रीँ धरणेन्द्र वैरोटया पद्मादेवी युतायते . १ शान्ति तृष्टि महापुष्टि, घृति कीर्ति विधायिने ॐ ह्रीँ द्विड् व्याल वैताल, सर्वाधि व्याधि नाशिने. २ जया जिताख्या विजयाख्या, पराजितयान्वितः दिशांपालैर्ग्रहै र्यक्षै, र्विद्यादेवीभिरन्वितः ३ ॐ असिआ उसायं नमस्तत्र, त्रैलोकय नाथतां, चतुःषष्टी सुरेंद्रास्ते, भासन्ते छत्र चामरैः ४ श्री शंखेश्वर मंडन, पार्श्व जिन प्रणत कल्पतरु कल्प; चूरय दुष्ट व्रातं, पूरय मे वांछित नाथ. ५
(76)
जो मान माया भजो भाव आणी, वामानंदने सेवीए सारजाणी, जुओ नागने नागणी नाथ ध्यानं, पामीयां शक्रनी संपदाबोधीदानं ॥१॥ वस्या पाटणे कालाकेतां घरमां, पधारीयां पछी प्रेमशुं पार करमां, थलीनो वलीवास कीधो विचारी, पुरे लोकनी आश त्रैलोक्य धारी ॥२॥ धरी हाथमां लाल कबाण रंगे, भीडी गातडी रातडी नील अंगे, चढी नीलडे तेजीये विघ्नवारे, घाई बाहरे पंथभूला सुधारे ॥३॥ जेणे पार्श्वगोडीतणो रुपजोयो, तेणे कर्मना पासनो जोर खोयो, जेणे पास गोडीतणां पाय पूज्यां शत्रु सर्वथा