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साथे, तारी मूर्ति उपर जाउं वारी हो, प्रभुजी० ॥८॥ उदयरत्ननो सेवक पभणे, मोक्षमांगु गुणखाणी, भवोभव तुम चरणोनी सेवा, ओह उपर हु रागी हो..प्रभुजी० ॥६॥
(15) पार्श्वनाथ जिन स्तवन (राग : गोडी) जय जय जय जय पास जिणंद. अंतरिक्ष प्रभु त्रिभुवन! तारक, भविक कमल उल्लास दिणंद०...जय० ॥१॥ तेरे चरन शरन में किनो, तुं बिनु कुन तोरे भव-फंद, परम पुरुष परमारथदर्शी, तुं दिये भविककुं परमानंद०... . जय० ॥२॥ तुं नायक तुं शिवसुख-दायक, तुं हितचिंतक तुं सुखकंद; तुं जनरंजन तुं भवभंजन, तुं केवल कमला गोविंद०...जय० ॥३॥ कोडी देव मिलके कर न शके, ओक अंगुठ रुप प्रतिछंद; जैसो अद्भुत रुप तिहारो, वरसत मानुं अमृतके बुंद०...जय० ॥४॥ मेरे मन मधुकरके मोहन, तुम हो विमल सदल अरविंद; नयन चकोर विलास करतुं ही, देखत तुम मुख पूनमचंद...जय० ॥५॥ दूर जावे प्रभु! तुम दरिशनसे, दुःख दोहग दारिद्र अघदंद; वाचक जस कहे सहस फलते तुमहो, जे बोलेतुमगुनकेवृंद०...जय० ॥६॥
(16) पार्श्वनाथ जिन स्तवन मोहनगारो मारो, दुःखनो हरनारो मारो, प्राण पियारो मारो, साहिबो; प्रभु माहरा, दिलभर दरिसण आप हो, प्रभु माहरा, मुगति तणाफल आप हो. ॥१॥ कर जोडी ओळग करु, प्रभुजी माहरा, रात दिवस ओक ध्यान हो; जाणो रखे देवू पडे, प्रभुजी माहरा, वात सुणो नहि कान हो...मोहन०. ॥२॥ करतां नित्य भोळामणी, प्र० इम केता दिन जाशे हो; भीना जे ओलग रसे प्र०, ते केम आकुल थाशे हो...मोहन०. ॥३॥ देव जगमा छे अनेरडा, प्र० ते मुज नवि सुहाय हो; फळ थाये जे तुम थकी, प्र०, ते किम अन्यथी थाय हो...मोहन०. ॥४॥ ओछा कदीय न सेविये, प्र०, जे न हरे पर पीड हो; मोटी लहरी सायर तणी, प्र०, भांगे ते भवनी भीड हो...मोहन०. ॥५॥ देतां भाडु भक्तिर्नु, प्र०, तिहां नही केहनो पाड हो; लेशुं फळ मन रीझवी, प्र०, तिहां किश्युं कहेशे चाड हो...मोहन०. ॥६।। मुख देखी टीलुं करे, प्र०