________________
154
मुज काज रे, सा० अक० ११ सा० हुं तुम पगनी मोजडी, सा० हुं तुम पगनो दास रे, सा० ज्ञानविमलसूरि ओम भणे, सा० मने राखो तमारी पास रे, साहिबा साहिबा एकवार मलोने मारा साहिबा ओक० १२.
__(6) श्री सीमंधर स्वामीजी का स्तवन सीमंधर सुणजो विनतीरे लोल, क्रांइ आज लगी दीलमा हतीरे लोल, मन भ्रमर अति लोभीयोरे लोलं, कांई प्रभुसेवाथी थोभीयोरे लोल ॥१॥ तुं त्रिभुवननो मोड छेरे लोल, कांई मुखदेखण कोड छेरे लोल, देवे न दीधी पांखडीरे लोल, काई दरिशण चाहे आंखडीरे लोल ॥२॥ मीठं दरिशण प्रभु ताहरु रे लोल, कांई चित्तईं चोर्यु तेणे माहरु रे लोल; हेजे हली तुजशं रह्योरे लोल, कांई तरण-तारण हियडे वस्यो रे लोल ॥३॥ मन जाणे उडी मलूरे लोल, कांई साहिब सेवामां भठूरे लोल नेहे निवारण जेह छे रे लोल, कांई बाह्य गह्यानी लाज छे रे लोल ॥४॥ रंग लाग्यो प्रभुशुं कीस्योरे लोल कांई चोल मजीठनो छे जीस्योरे लोल विसारीया केम विसरे रे लोल. काई रात-दिवसघडी सांभरेरे लोल ॥५।। नवल स्नेही दुःख कंदनारे लोल कांई जिनजी जगदानंदना लोल, अवगुण तजी गुण लेखवोरे लोल कांई सेवक दीलभर देखवोरे लोल, ॥६॥ तुं जग जीवन जोडछेरे लोल कांई सेवामां शी खोड छ लोल कांतिविजय जिनजी मल्यारे लोल, कांई मन मांग्या पासा ढल्यारे लोल, ७||
(7) श्री सीमंधर जिन स्तवन (राग : आसो मासे ते ओली) ___ बे कर जोडी विनवूरे लोल, मारी विनतडी अवधाररे तुमे महाविदेहमां वस्यारे जइ लोल, अमने छे तुम आधाररे, प्रभाते ऊडी करुं वंदनारे लोल ॥१॥ भरतक्षेत्रमा हुँ अवतर्यो रे लोल, किमकरी आq हजूरे, ॥ तुम दरिशण नवि पामीयोरे लाल, रह्यो मजूरनो मजूररे प्रभाते० ॥२॥ तुम पासे देवघणां वसेरे लोल, एक मोकलजो महाराजरे ॥ मननां संदेह प्रभु पूछीनेरेलोल, करुं सफळ दीन आजरे प्रभाते० ॥३॥ केवलज्ञानीना विरहथीरे लोल, मनुष्य जन्म एळे जायरे, शुभ भाव आवे नहीरे लोल, शी गति माहरी थाय रे, प्रभाते० ॥४॥ कर्मने मोहे खूब कस्योरे लोल, हजू न